एक डॉलर खाता क्या है

एक मुद्रा को दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा के बारे में
एक मुद्रा को दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा से, अपने प्रॉडक्ट को ज़्यादा देशों तक पहुंचाया जा सकता है. यह खास तौर पर आपके लिए तब अहम हो सकता है, जब एक से ज़्यादा देशों में अपने प्रॉडक्ट बेचे और शिप किए जाते हैं. हालांकि, आपकी वेबसाइट पर हर देश की मुद्रा के लिए अलग प्रॉडक्ट पेज नहीं होते हैं. Merchant Center के सभी खातों में एक मुद्रा को दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा अपने-आप चालू रहती है. बस वे प्रॉडक्ट और कीमतें सबमिट करें जो आपकी वेबसाइट पर इस्तेमाल की जाती हैं. इसके बाद, टूल आपके लिए विज्ञापनों में एक मुद्रा को दूसरी मुद्रा में बदले जाने का अनुमान लगा लेगा.
इस लेख में बताया गया है कि एक मुद्रा को दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा कैसे काम करती है.
फ़ायदे
- आपके प्रॉडक्ट के विज्ञापनों को आपकी वेबसाइट में बिना कोई बदलाव किए, अपने-आप दूसरे देश में दिखाती है. जिस देश में सामान बेचा जा रहा है अगर आपके पास उसकी मुद्रा स्वीकार करने की सुविधा नहीं है, तो एक मुद्रा से दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा से आपको अपनी पहुंच बढ़ाने में मदद मिलती है.
यह सुविधा कैसे काम करती है
एक मुद्रा से दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा, आपके प्रॉडक्ट डेटा में दी गई कीमत को अपने-आप टारगेट किए गए नए देश की मुद्रा में बदल देती है. साथ ही, आपके विज्ञापनों और मुफ़्त में दिखाई जाने वाली प्रॉडक्ट लिस्टिंग में दोनों कीमतें दिखती हैं. इससे आपकी लिस्टिंग और विज्ञापन, दूसरे देशों के लोगों को भी समझ में आ जाते हैं. साथ ही, कम से कम बदलाव करके, अपनी मौजूदा वेबसाइट और लैंडिंग पेजों का इस्तेमाल करना जारी रखा जा सकता है.
अगर अपने कैंपेन में, टारगेट किए गए देश की मुद्रा से अलग मुद्रा में कीमतें दी जाती हैं, तो कीमतें अपने-आप बदल जाएंगी और स्थानीय मुद्रा में दिखेंगी.
आपके विज्ञापन या लिस्टिंग में दिख रही, बदली हुई कीमत का अनुमान, Google Finance की विनिमय दरों के मुताबिक होगा.
आपके विज्ञापनों और लिस्टिंग में आपकी मुद्रा को उस देश की मुद्रा में बदल दिया जाएगा जहां प्रॉडक्ट को बेचा जाना है. हालांकि, किसी नए देश को टारगेट करने के लिए, आपको उस देश की भाषा से जुड़ी ज़रूरी शर्तों को अब भी पूरा करना होगा. ध्यान रखें कि आपको अपने टारगेट किए गए देश की शिपिंग से जुड़ी ज़रूरी शर्तों को पूरा करने के लिए, अपनी शिपिंग की सेटिंग भी अपडेट करनी होंगी. शिपिंग की जानकारी सेट अप करने का तरीका जानें
आपकी वेबसाइट आपकी मौजूदा मुद्रा में शुल्क लेती है, इसलिए उपयोगकर्ता की खरीदारी की आखिरी कीमत उपयोगकर्ता के क्रेडिट कार्ड या पैसे चुकाने की सेवा देने वाली दूसरी कंपनी की विनिमय दरों के हिसाब से होती है. इसका एक डॉलर खाता क्या है मतलब है कि खरीदारी की आखिरी कीमत और अनुमान अलग-अलग हो सकते हैं. पक्का करें कि आपके पूरे लैंडिंग पेज और वेबसाइट पर कीमत, सबसे पहले चुनी गई मुद्रा में साफ़ तौर पर दिख रही हो.
मटिल्डा का स्टोर अमेरिका में है और उनकी वेबसाइट पर प्रॉडक्ट की कीमतें अमेरिकन डॉलर में दिखती हैं. वह अमेरिका में विज्ञापन करने के लिए शॉपिंग विज्ञापनों का इस्तेमाल करती हैं, इसलिए उनके प्रॉडक्ट डेटा में कीमतें अमेरिकन डॉलर में होती हैं. वह कनाडा में भी प्रॉडक्ट को बेचती और शिप करती हैं, लेकिन उनकी वेबसाइट पर कीमतें कैनेडियन डॉलर में नहीं दिखतीं.
हालांकि, एक मुद्रा से दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा के साथ, मटिल्डा कनाडा में विज्ञापन देने के लिए अपना अमेरिका का प्रॉडक्ट डेटा और लैंडिंग पेज इस्तेमाल कर सकती हैं, जिस पर कीमतें अमेरिकन डॉलर में दिखती हैं. प्रॉडक्ट डेटा सबमिट करने के बाद, वे अपने Google Ads खाते में एक नया शॉपिंग कैंपेन बनाती हैं. अब उनके पास दो कैंपेन हैं, एक अमेरिका के लिए और दूसरा कनाडा के लिए. इसके एक डॉलर खाता क्या है लिए, उन्होंने वही लैंडिंग पेज और खास तौर पर वही प्रॉडक्ट डेटा इस्तेमाल किया है.
मटिल्डा के कनाडा वाले कैंपेन में, उनके विज्ञापन पर प्रॉडक्ट की कीमतें कैनेडियन डॉलर में दिखती हैं और दूसरी मुद्रा के तौर पर अमेरिकी डॉलर वाली कीमतें एक डॉलर खाता क्या है भी होती हैं. दूसरी मुद्रा में बदली गई कीमतों से कनाडा के संभावित ग्राहकों को प्रॉडक्ट और उसकी कीमत को अपनी जानी-पहचानी मुद्रा में समझने में मदद मिलती है. लोग जब किसी विज्ञापन पर क्लिक करते हैं, तो उन्हें मटिल्डा का लैंडिंग पेज दिखता है जिसमें कीमत अमेरिकी डॉलर में होती हैं. वे अपनी खुद की मुद्रा में साफ़ तौर पर कीमत की जानकारी पाकर, चेकआउट प्रोसेस को पूरा कर सकते हैं.
नीति और ज़रूरी शर्तें
उपयोगकर्ताओं को आपकी मुफ़्त में दिखाई जाने वाली लिस्टिंग और विज्ञापन, एक डॉलर खाता क्या है उनकी मुद्रा से अलग मुद्रा में दिखते हैं. इसलिए, उन्हें लग सकता है कि वे किसी दूसरे देश की कंपनी या व्यापारी से खरीदारी कर रहे हैं. लोगों के अनुभव को एक जैसा रखने के लिए, आपको उस देश की कीमत और टैक्स से जुड़ी ज़रूरी शर्तों का पालन करना होगा जिसकी मुद्रा का इस्तेमाल आपके प्रॉडक्ट डेटा में हुआ है.
उदाहरण के लिए, अगर आपका प्रॉडक्ट डेटा अमेरिकी डॉलर में सबमिट किया गया है और आपकी वेबसाइट अमेरिकी डॉलर में शुल्क ले रही है, तो आपको अमेरिका की कीमत और टैक्स से जुड़ी ज़रूरी शर्तों का पालन करना होगा. दूसरी सभी ज़रूरी शर्तों के बारे में जानने के लिए, उस देश की स्थानीय ज़रूरी शर्तें देखें.
यह किन सुविधाओं के साथ काम करता है
Merchant Center और Google Ads की इन सुविधाओं के साथ, एक मुद्रा को दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा का इस्तेमाल किया जा सकता है.
Dollar vs Rupee : गिरते रुपये का आखिर क्या करे सरकार? वेट एंड वॉच की रणनीति से होगा फायदा?
Dollar vs Rupee : महामारी के दौरान एक्सपोर्ट बढ़ा था। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा। सितंबर में तो एक्सपोर्ट घट भी गया। यही हाल रहा तो साल 2022-23 में चालू खाते का घाटा जीडीपी के 4 प्रतिशत तक जा सकता है। इससे रुपये में और गिरावट आ सकती है।
Dollar vs Rupee : गिरते रुपये को बचाने के लिए अपनायी जाए यह रणनीति
हाइलाइट्स
- यूएस डॉलर के मुकाबले बीते हफ्ते 83.26 तक चला गया रुपया
- यूएड फेड के ब्याज दरें बढ़ाने से मजबूत हो रहा डॉलर
- व्यापार घाटा बढ़ा तो रुपये में और आएगी गिरावट
- अभी दुनिया में 80 फीसदी से ज्यादा व्यापार डॉलर में हो रहा है।
- तमाम देशों के केंद्रीय बैंक जो विदेशी मुद्रा भंडार रखते हैं, उसका करीब 65 प्रतिशत हिस्सा डॉलर में है।
- रुपया इस साल अब तक 10 प्रतिशत से गिरा है तो जापानी येन में 22 प्रतिशत से ज्यादा नरमी आ चुकी है।
- साउथ कोरियन वॉन और ब्रिटिश पौंड 17-17 प्रतिशत गिरे हैं।
- यूरो भी इस साल अब तक 14 प्रतिशत से ज्यादा गिर चुका है।
- चाइनीज रेनमिबी की वैल्यू 12 प्रतिशत घट एक डॉलर खाता क्या है चुकी है।
क्यों मजबूत हो रहा डॉलर
यूक्रेन युद्ध के चलते पूरा यूरोप बेहाल है। जर्मनी से लेकर फ्रांस, ब्रिटेन और तुर्की तक में महंगाई आसमान छू रही है। दुनिया में एक बार फिर मंदी का खतरा जताया जा रहा है। इकॉनमी से जुड़ा रिस्क जब भी बढ़ता है, निवेशक सुरक्षित माने जाने वाले डॉलर की ओर भागते हैं। एक और फैक्टर है, अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दर बढ़ा रहा है। वह इस साल मार्च से अपना पॉलिसी रेट 3 प्रतिशत बढ़ा चुका है। इससे विदेशी निवेशक दूसरे इमर्जिंग मार्केट्स और भारत से पैसे निकालने लगे हैं, क्योंकि अमेरिका में उन्हें रिस्क फ्री बेहतर रिटर्न दिख रहा है।
चालू खाता घाटा
रुपये पर दबाव बढ़ने के पीछे एक और फैक्टर है भारत का बढ़ता करंट एकाउंट डेफिसिट। जब निर्यात से होने वाली कमाई के मुकाबले आयात पर ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है, तो करंट एकाउंट डेफिसिट की स्थिति बनती है। कोविड महामारी के दौरान भारत से एक्सपोर्ट बढ़ा था। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा। सितंबर में तो एक्सपोर्ट घट भी गया। अगर यही हाल रहा तो साल 2022-23 में चालू खाते का यह घाटा जीडीपी के 4 प्रतिशत तक भी जा सकता है। यह पिछले 10 वर्षों का सबसे ऊंचा स्तर होगा। क्रूड ऑयल इंपोर्ट के चलते भी चालू खाते का घाटा और बढ़ने का खतरा है। क्रूड ऑयल निर्यात करने वाले देशों ने तय किया है कि वे नवंबर से उत्पादन 20 लाख बैरल प्रतिदिन घटाएंगे। इससे दाम और चढ़ेगा।
क्या करे भारत?
अब आते हैं इस सवाल पर कि रुपये के मामले में भारत क्या कर सकता है। एक डॉलर खाता क्या है विकसित देशों में महंगाई चार दशकों के ऊंचे स्तर पर है। वहां मंदी आने का खतरा बढ़ गया है। लिहाजा वहां भारत की वस्तुओं और सेवाओं की डिमांड घटी है। देश में डिमांड बढ़ाकर इसकी भरपाई हो सकती है, लेकिन कुछ हद तक एक डॉलर खाता क्या है ही। ऐसे में देखते हैं कि भारत सरकार के सामने क्या विकल्प हैं और वे कितने प्रभावी हो सकते हैं।
1. पहला उपाय है देश में चीजों और सेवाओं की डिमांड बढ़ाने के लिए टैक्स घटाया जाए। इससे चीजों और सेवाओं की डिमांड बढ़ेगी, इकॉनमी स्टेबल होगी। लेकिन टैक्स घटने से सरकार के रेवेन्यू पर असर पड़ेगा। वैसे भी आम बजट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2022-23 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 6.4 प्रतिशत के आसपास रहेगा। अभी कर्ज का स्तर भी बहुत बढ़ गया है। सरकारी एक डॉलर खाता क्या है एक डॉलर खाता क्या है कर्ज और जीडीपी का रेशियो लगभग 90 प्रतिशत हो चुका है। इन हालात को देखते हुए सरकार के पास राजकोषीय मदद देने की गुंजाइश बहुत कम रह गई है।
2. दूसरा उपाय यह है कि डॉलर की बढ़ती डिमांड का दबाव घटाने के लिए आरबीआई डॉलर बेचे। आरबीआई ने ऐसा किया भी है। लेकिन इससे बात नहीं बनी, उलटे सालभर में विदेशी मुद्रा भंडार करीब 110 अरब डॉलर घट गया। करंट एकाउंट डेफिसिट अगर मामूली होता तो डॉलर बेचने से कुछ मदद मिल सकती थी। लेकिन मामला ऐसा है नहीं।
3. तीसरा उपाय है, अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ रही हैं तो आरबीआई भी ब्याज दरें बढ़ाता जाए। लेकिन दिक्कत यह है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर और 125 बेसिस पॉइंट बढ़ाने का संकेत दिया है। भारत में इस तरह के इजाफे की गुंजाइश नहीं है क्योंकि इससे इकॉनमिक रिकवरी को बड़ा झटका लग सकता है।
Rupee Vs Dollar: डॉलर के आगे दुबला होता जा रहा रुपया! गिरावट का बनाया नया रिकॉर्ड, 83 के आंकड़े को किया पार
लोड न ले आरबीआई
ऐसे में ठीक यही लग रहा है कि रुपये को सहारा देने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल न किया जाए। आरबीआई रुपये की चाल में तब तक कोई दखल न दे, जब तक कि इसमें अचानक बहुत तेज गिरावट न आए। बाजार के हिसाब से यह जहां तक गिरता है, गिरने दे। इस रणनीति के फायदे भी हैं।
1. एक फायदा तो यही है कि विदेशी मुद्रा भंडार के इतने बड़े इस्तेमाल की जरूरत नहीं रहेगी। फॉरेन एक्सचेंज बचा रहेगा तो अचानक लगने वाले किसी भी बाहरी झटके से इकॉनमी को बचाने में काम आएगा।
2. दूसरी बात, रुपया नरम रहेगा तो भारतीय निर्यात को फायदा मिलेगा।
3. ट्रेड डेफिसिट और करंट एकाउंट डेफिसिट घटाने के लिए आयात घटाने के साथ निर्यात बढ़ाना भी जरूरी है।
4. वैश्विक बाजार में चीन का दबदबा कुछ घटता दिख रहा है। उस जगह को भरने के लिए सरकार को निर्यात पर सब्सिडी देने जैसे कदम उठाने होंगे। लेकिन रुपये में कमजोरी इस मामले में कहीं ज्यादा कारगर साबित हो सकती है।
कुल मिलाकर इस स्ट्रैटेजी में फायदे ज्यादा हैं, नुकसान कम। अच्छी बात यह है कि आरबीआई अब इसी राह पर आ चुका है। ध्यान केवल इतना रखना होगा कि रुपया इतना कमजोर न हो जाए कि इंपोर्ट बिल बहुत ज्यादा बढ़ जाए।
डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट आगे और गहराने के आसार, आपके निवेश पर असर डालता है कमजोर रुपया
विशेषज्ञों की मानें तो एक डॉलर की कीमत 83 रुपये की तरफ बढ़ती नजर आ रही है, साथ ही आने वाले दिनों में यह और भी नीचे जा सकता है। हालांकि, मध्यम अवधि में डॉलर की कीमत 82 रुपये के दायरे में रह सकता है।
Dollar Vs Rupee: डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट और गहराने लगी है। एक डॉलर की कीमत कारोबार के दौरान सोमवार को रिकॉर्ड 82.69 के निचले स्तर तक गई। आखिर में यह 82.34 प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ। विशेषज्ञों की मानें तो एक डॉलर की कीमत 83 रुपये की तरफ बढ़ती नजर आ रही है, साथ ही आने वाले दिनों में यह और भी नीचे जा सकता है। हालांकि, मध्यम अवधि में डॉलर की कीमत 82 रुपये के दायरे में रह सकता है।
डॉलर की मजबूती से तमाम वैश्विक मुद्राओं में गिरावट
दुनियाभर में डॉलर की मजबूती से तमाम वैश्विक मुद्राओं में गिरावट देखी जा रही है। उसी मुकाबले रुपये में भी गिरावट देखने को मिल रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले दिनों में जिस हिसाब से रुपये में तेज गिरावट देखने को मिल रही है यह आने वाले दिनों में 83 के स्तर के भी नीचे जा सकता है।
केयर रेटिंग की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा के मुताबिक अभी रुपये में तेज गिरावट जारी रह सकती है लेकिन तीन से चार महीनों की मध्यम अवधि के दायरे को देखा जाए तो रुपया 82 के स्तर के करीब ही बना रहेगा। उन्होंने कहा कि रुपये की गिरावट से न केवल कच्चे तेल की महंगी कीमत चुकानी पड़ेगी बल्कि कारोबारियों के लिए कच्चा माल भी महंगा रहेगा।
भारतीय उत्पाद भी महंगा होने के आसार
रुपये की गिरावट से भारतीय उत्पाद भी महंगा होने के आसार हैं। विदेशों से आने वाले कच्चे माल के लिए डॉलर के मुकाबले ज्यादा रुपये देने होंगे। वहीं विदेशों में मांग में सुस्ती को देखते हुए बिक्री भी मुश्किल हो जाएगी। ऐसे में निर्यात पर निर्भर कारोबारियों के लिए आने वाले महीने मुश्किल भरे रह सकते हैं। यही नहीं, घरेलू बाजारों में भी वो तमाम सामान महंगा हो जाएगा जो विदेशों से आता है या फिर उनके उत्पादन पर इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल बड़े पैमाने पर विदेश से आता है। रजनी सिन्हा के मुकाबले अगर रुपये में आगे भी इसी तरह तेज गिरावट जारी रही तो उसे रोकने के लिए रिजर्व बैंक को अभी के मुकाबले ज्यादा कड़े कदम उठाने की जरूरत होगी।
आपके निवेश पर असर डालता है कमजोर रुपया
रुपये के कमजोर होने से खाद्य तेल और पेट्रोल-डीजल के लिए जरूरी कच्चा तेल महंगा हो जाता है। इससे जरूरी उत्पादों के दाम बढ़ जाते हैं। इससे दोहरा नुकसान होता है। यदि आप अपने वेतन से हर माह 20 फीसदी बचाते हैं तो महंगाई बढ़ने से हो सकता है कि आप 12 से 15 फीसदी ही बचत कर पाएं। वहीं एफडी पर सात फीसदी ब्याज मिल रहा है लेकिन महंगाई 7.50 फीसदी पहुंच जाए तो उस स्थिति में आपको फायदा की बजाय आधा फीसदी का नुकसान होता है।
पाकिस्तान में डॉलर के मुक़ाबले रुपये की क़ीमत गिरने की वजहें आर्थिक हैं या सियासी
गुरुवार को कारोबार की समाप्ति पर एक डॉलर 239.94 रुपये कीमत पर बंद हुआ. डॉलर की कीमत में रोजाना तीन से चार रुपये की बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है.
19 जुलाई को पाकिस्तानी रुपये की कीमत एक दिन में ही सात रुपये गिर गई जो देश के इतिहास में एक दिन में आई सबसे बड़ी गिरावट थी.
पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के बीच जुलाई में एक स्टाफ़ लेवल समझौते पर सहमति बनी थी. आईएमएफ़ के लोन प्रोग्राम के तहत पाकिस्तान को वित्तीय मदद की जाएगी.
इसी समझौते को देखते हुए वित्त मंत्री मिफ़्ताह इस्माइल ने अगस्त में विनिमय दर में स्थिरता आने की संभावना जताई थी. लेकिन, मुद्रा और वित्तीय मामलों की जानकारी रखने वालों की मानें तो ये स्थिरता तभी आएगी जब पाकिस्तान में बाहरी स्रोतों से पैसा आना शुरू होगा जो फिलहाल पूरी तरह रुका हुआ है.
विशेषज्ञ पाकिस्तान में बढ़ते राजनीतिक संकट को लेकर भी चिंता जाहिर करते हैं. उनके अनुसार, राजनीतिक संकट आर्थिक संकेतकों के लिए नकारात्मक साबित हो रहे हैं और इससे रुपये का मूल्य भी प्रभावित हो रहा है.
विशेषज्ञों के मुताबिक पाकिस्तान में डॉलर की कीमत बढ़ने के कारण महंगाई की एक और लहर उठेगी क्योंकि पाकिस्तान अपनी ऊर्जा और खाद्य ज़रूरतों के लिए आयात पर निर्भर करता है. डॉलर की कीमत बढ़ने से आयात और महंगा हो जाएगा.
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डॉलर की कीमत अब तक कितनी बढ़ी
पिछले साल अगस्त में एक डॉलर की कीमत 155 से 160 रुपये के बीच थी.
इमरान ख़ान की पार्टी पीटीआई के नेता अक्सर ये कहते हैं कि इस साल मार्च में जब उनकी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया तो डॉलर 178 रुपये के स्तर पर था.
पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के नेतृत्व वाले गठबंधन की सरकार बनने पर 11 अप्रैल को एक डॉलर की कीमत 182 रुपये थी. इसके बाद भी डॉलर की कीमत बढ़ती गई और 30 जून को ख़त्म हुए वित्त वर्ष में कीमत बढ़कर 205 रुपये हो गई.
आईएमएफ़ के साथ स्टाफ़ स्तर के समझौते से एक दिन पहले डॉलर की कीमत 210 रुपये पर थी जिसमें समझौते के बाद डेढ़ रुपये की कम आई थी.
नई सरकार के गठन के बाद से डॉलर के मूल्य में 60 रुपये की बढ़ोतरी हुई है जबकि पीटीआई के साढ़े तीन साल के शासन के दौरान डॉलर की कीमत में 55 रुपये की तेज़ी दर्ज की गई थी.
ऐसे में विपक्षी दलों का दावा है कि प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ पाकिस्तानी रुपये की कीमत को स्थिर करने में विफ़ल रहे हैं.
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आईएमएफ़ से समझौते के बावजूद गिर रहा रुपया
दो देश,दो शख़्सियतें और ढेर सारी बातें. आज़ादी और बँटवारे के 75 साल. सीमा पार संवाद.
जुलाई मध्य में पाकिस्तान और आईएमएफ़ के बीच समझौते से पहले जब डॉलर की कीमत बढ़ रही थी तो इसकी वजह समझौते में देरी को बताया जा रहा था.
लेकिन, आईएमएफ़ के साथ समझौता होने के बावजूद भी पाकिस्तान में डॉलर के मूल्य में वृद्धि जारी है. वित्तीय मामलों के विशेषज्ञों के अनुसार उस दौरान डॉलर के मूल्य में आई कमी सिर्फ़ एक या दो दिनों के लिए ही थी. उसके बाद डॉलर फिर ऊपर की ओर जाने लगा.
फॉरेक्स एसोसिएशन ऑफ़ पाकिस्तान के अध्यक्ष मलिक बुस्तान ने बीबीसी को बताया कि आईएमएफ़ समझौते से आया प्रभाव आधे दिन तक रहा लेकिन उसके बाद जब पीटीआई ने उपचुनाव जीता तो इससे अनिश्चितता बढ़ गई और रुपये की कीमत गिर गई.
बुस्तान कहते हैं कि हालात ऐसे लगते हैं कि राजनीतिक तनाव और बढ़ेगा जो अर्थव्यवस्था के लिए नकारात्मक साबित होगा.
उन्होंने कहा, "अभी तक सिर्फ़ आईएमएफ़ के साथ समझौता हुआ है लेकिन पैसा नहीं आया है. जब आईएमएफ़ बोर्ड अगस्त में बैठगा तो उसके बाद ही पैसा मिलने की संभावना है."
मलिक बुस्तान कहते हैं कि अभी तक ये जानकारी नहीं है कि आईएमएफ़ की कौन-सी शर्ते हैं जिन्हें अभी पूरा करना बाकी है. इन्हें पूरा करने के बाद ही पैसा जारी किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि आईएमएफ़ से पैसा ना मिलने के चलते अन्य बाहरी स्रोतों से भी वित्तीय मदद बंद हो गई है.
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अफ़ग़ानिस्तान का असर
पाकिस्तान रुपये की बिगड़ती हालत के पीछे विशेषज्ञ आर्थिक कारणों को ही नहीं बल्कि राजनीतिक संकट को भी ज़िम्मेदार बताते हैं. उनका कहना है कि पाकिस्तान के आयात बिल, व्यापार घाटे और राजनीतिक संकट के कारण डॉलर के मूल्य में वृद्धि हो रही है.
पाक-कुवैत इंवेस्टमेंट कंपनी के प्रमुख समीउल्लाह तारिक़ ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि आईएमएफ समझौते के बाद स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान की विनिमय दर में हस्तक्षेप करने में भूमिका सीमित हो गई है, जिसके कारण अब यह डॉलर को एक निश्चित स्तर पर बनाए रखने के लिए कोई भूमिका नहीं निभा सकता.
वहीं, जून में आयातित ऊर्जा उत्पादों के लैटर ऑफ़ क्रेडिट को निपटाने का इतना दबाव था कि इससे डॉलर की मांग काफ़ी बढ़ गई. लैटर ऑफ़ क्रेडिट एक ऐसा दस्तावेज होता है जो आयात करने वाले देश के बैंक से जारी किया जाता है जो निर्यात करने वाले देश को भुगतान का आश्वासन देता है.
एक्सचेंज कंपनीज़ एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटी ज़फ़र प्राचा ने कहा कि इस समय अफ़ग़ानिस्तान की तरफ़ से डॉलर की तस्करी भी बढ़ी है जिससे डॉलर की कीमत में तेज़ी आ रही है.
उन्होंने बताया कि वर्तमान में पेशावर में डॉलर 250 रुपये तक खुले बाजार में बिक रहा है जबकि अफ़गानिस्तान में यह 255 रुपये में बिक रहा है.
मलिक बुस्तान ने यह भी कहा कि अफ़गानिस्तान की आयात जरूरतों के लिए भी हमारे खाते से डॉलर जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर एक साल में देखा जाए तो अफ़गानिस्तान की आयात जरूरतों के कारण पाकिस्तान का आयात बिल साढ़े चार अरब डॉलर से बढ़कर साढ़े सात अरब डॉलर हो गया है.
उन्होंने कहा कि पिछले साल अगस्त में पाकिस्तान के पास बीस अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार था, जो अब घटकर नौ अरब डॉलर हो गया है.
80 रुपए का हुआ एक डॉलर, जानिए आप पर क्या पड़ेगा असर
बिजनेस डेस्कः कई हफ्तों से लगातार गिर रहा रुपया आज डॉलर के मुकाबले 80 रुपए के स्तर पर पहुंच गया। ये पहली बार है जब रुपया इतना नीचे गिरा है। अगर बात सिर्फ इस साल की करें तो आज की तारीख तक रुपए में करीब 7 फीसदी की तगड़ी गिरावट देखने को मिली है। आइए जानते हैं रुपए में गिरावट का आम आदमी पर और देश की अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर।
आम आदमी पर होगा क्या असर?
रुपए की गिरावट का आम आदमी पर सीधा असर देखने को मिलेगा। आम आदमी के लिए वह हर चीज महंगी हो जाएगी जो विदेशों से आयात की जाती है। सबसे बड़ा असर पेट्रोल-डीजल पर देखने को मिल सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि कच्चे तेल का आयात करने में भुगतान डॉलर में करना होता है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल आयात करता है। हाल ही में खबर आई थी कि कच्चा तेल गिरकर 100 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गया है, जिससे पेट्रोल-डीजल सस्ते हो सकते हैं। हालांकि, रुपया इतना नीचे गिर जाने के चलते राहत की उम्मीद टूटती नजर आ रही है। इसके अलावा विदेशों से आयात एक डॉलर खाता क्या है किए जाने वाले खाने के तेल महंगे हो सकते हैं। सोने का दाम एक बार फिर से तेजी से बढ़ना शुरू हो सकता है।
आयातकों को नुकसान, निर्यातकों को फायदा
रुपए में गिरावट का असर सबसे अधिक आयातकों और निर्यातकों पर देखने को मिलेगा। रुपए में गिरावट की वजह से आयात महंगा हो जाएगा, क्योंकि हमें कीमत डॉलर में चुकानी होती है। ऐसे में पहले 1 डॉलर के लिए जहां 74-75 रुपए चुकाने होते थे, वहीं अब 80 रुपए चुकाने पड़ेंगे। वहीं इसका उल्टा निर्यातकों को रुपए में एक डॉलर खाता क्या है एक डॉलर खाता क्या है गिरावट का फायदा होगा, क्योंकि हमें भुगतान डॉलर में होता है और अब एक डॉलर की कीमत रुपए के मुकाबले बढ़ चुकी है।
मसलन सॉफ्टवेयर कंपनियों और फार्मा कंपनियों को फायदा होता है। हालांकि कुछ एक्सपोर्टरों पर महंगाई दर ज्यादा होने से लागत का बोझ पड़ता है और वे रुपए में गिरावट का ज्यादा फायदा नहीं उठा पाते हैं। मसलन जेम्स-जूलरी, पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स, ऑटोमोबाइल, मशीनरी को आइटम बनाने वाली कंपनियों की उत्पादन लागत बढ़ जाती है। इससे उनके मार्जिन पर असर पड़ता है।
विदेश पढ़ने जाने वाले छात्रों के माथे पर शिकन
भारतीय छात्रों के लिए अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने का सपना पूरा करना दिन ब दिन मुश्किल होता जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अब उन्हें अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए अधिक पैसा खर्च करना होगा और अगर वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उन्हें ऐसे देश का चुनाव करना होगा, जहां पढ़ाई अपेक्षाकृत सस्ती हो। एक ओर, वित्तीय संस्थानों को लगता है कि चिंताएं वास्तविक हैं और भारी-भरकम शिक्षा ऋण लेने की जरूरत बढ़ सकती है, तो विदेश में रहने वाले शिक्षा सलाहकारों का मानना है कि उन छात्रों को इतनी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, जो पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका में काम करने की योजना बना रहे हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत से 13.24 लाख से अधिक छात्र उच्च अध्ययन के लिए विदेश गए हैं, जिनमें से अधिकांश अमेरिका (4.65 लाख), इसके बाद कनाडा (1.83 लाख), संयुक्त अरब अमीरात (1.64 लाख) और ऑस्ट्रेलिया (1.09 लाख) में हैं।
विदेश से रेमिटांस पाने वालों को होगा फायदा
ऐसे बहुत सारे छात्र हैं जो विदेश जाकर वहां पढ़ने और फिर वहीं पर नौकरी करने का सपना देखते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि रुपए के मुकाबले डॉलर मजबूत है। ऐसे में जब वह विदेश में पैसे कमाकर भारत में अपने परिवार को भेजते हैं तो यहां उन पैसों की कीमत कई गुना बढ़ जाती है। ऐसे लोगों को रुपए में गिरावट का फायदा मिलेगा। अगर आपके पास भी विदेश से पैसे आते हैं तो अब आपके पहले जितने डॉलर की कीमत ही अधिक रुपयों के बराबर हो जाएगी।
शेयर बाजार पर पड़ेगा बुरा असर
रुपए में गिरावट का शेयर बाजार पर बहुत बुरा असर देखने को मिल रहा है। दरअसल, अमेरिकी फेडरल रिजर्व इस महीने के अंत में एक बार फिर पॉलिसी रेट में बढ़ोतरी कर सकता है। साथ ही अमेरिका में मंदी की आशंका से भी डॉलर की मांग बढ़ रही है। ऐसे में विदेशी निवेशक सुरक्षित निवेश के लिए डॉलर का रुख कर रहे हैं और भारतीय बाजार से लगातार पैसे निकाल रहे हैं। शेयर बाजार में गिरावट की एक बहुत बड़ी वजह है रुपए में गिरावट। आईटी सेक्टर की कंपनियों को रुपए में गिरावट से फायदा होगा। इनमें टीसीएस, इन्फोसिस, टेक महिंद्रा, विप्रो और माइंडट्री शामिल हैं। इसकी वजह यह है कि इनकी ज्यादातर कमाई डॉलर से होती है। टीसीएस की कमाई में 50 फीसदी अमेरिका से आता है। इसी तरह इन्फोसिस के रेवेन्यू में 60 फीसदी हिस्सेदारी नॉर्थ अमेरिका की है। एचसीएल की 55 फीसदी कमाई केवल अमेरिका से होती है।
रुपए में गिरावट का प्रमुख कारण
रुपए में कमजोरी का सबसे बड़ा कारण ग्लोबल मार्केट का दबाव है, जो रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से आया है। ग्लोबल मार्केट में कमोडिटी पर दबाव की वजह से निवेशक डॉलर को ज्यादा पसंद कर रहे हैं, क्योंकि वैश्विक बाजार में सबसे ज्यादा ट्रेडिंग डॉलर में होती है। लगातार मांग से डॉलर अभी 20 साल के सबसे मजबूत स्थिति में है। इसके अलावा विदेशी निवेशक इस समय भारतीय बाजार से लगातार पूंजी निकाल रहे हैं, जिससे विदेशी मुद्रा में कमी आ रही और रुपए पर दबाव बढ़ रहा है। वित्तवर्ष 2022-23 में अप्रैल से अब तक विदेशी निवेशकों ने 14 अरब डॉलर की पूंजी निकाल ली है।
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