शीर्ष विदेशी मुद्रा ट्रेडिंग किताबें

मौलिक विश्लेषण की परिभाषा

मौलिक विश्लेषण की परिभाषा
लोकगीत- अर्थ, परिभाषा, स्वरूप, उद्भव एवं विकास | Original Article Rajkumar .*, Deepika Logani Trikha, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

मौलिक विश्लेषण की परिभाषा

Year: Apr, 2018
Volume: 15 / Issue: 1
Pages: 77 - 79 (3)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/a/56770
Published On: Apr, 2018

Article Details

लोकगीत- अर्थ, परिभाषा, स्वरूप, उद्भव एवं विकास | Original Article

Rajkumar .*, Deepika Logani Trikha, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

आर्थिक भूगोल/परिचय

आर्थिक भूगोल, मानव भूगोल की एक प्रमुख शाखा हैं [१] जिसमें भूतल पर मानवीय आर्थिक क्रियाओं,जैसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर पायी जाने वाली विभिन्नता का अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाओं के वितरण प्रतिरूपों तथा उन कारकों एवं प्रक्रमों का अध्ययन किया जाता है जो भूतल पर इन प्रतिरूपों के क्षेत्रीय विभेदशीलता को प्रभावित करते हैं। आर्थिक भूगोल में मृदा, जल, जैव तत्त्व, खनिज, ऊर्जा आदि प्राकृतिक संसाधनों, आखेट, मत्स्य पालन,पशुपालन, वनोद्योग, कृषि, विनिर्माण उद्योग, परिवहन,संचार, व्यापार, वाणिज्य,आदि आर्थिक क्रियाओं तथा अन्य आर्थिक पक्षों एवं संगठनों के अध्ययनों को सम्मिलित करते है। [२] प्रारंभ में आर्थिक भूगोल को पहले मानव भूगोल एवं बाद में सामाजिक भूगोल की मुख्य शाखा माना गया था, परंतु वर्तमान में आर्थिक भूगोल स्वयं भूगोल की एक महत्वपूर्ण शाखा बन गई है। आर्थिक भूगोल हमें ऐसे प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति, प्राप्ति और वितरण आदि से परिचित कराता है जिनके द्वारा वर्तमान में किसी देश की आर्थिक उन्नति हो सकती है। इसके द्वारा ही हमें पता चलता है कि किसी देश में पाई जाने वाली प्राकृतिक संपत्ति का किस विधि द्वारा, कहां पर और किस कार्य के लिए उपयोग किया जा सकता है। भूगोल किसी राष्ट्र की संपूर्ण अर्थव्यवस्था को निर्धारित कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति एक पर्वत श्रृंखला के साथ काम कर रहा है, तो परिवहन उसके लिए उतना कठिन हो सकता है जितना कि सोच नहीं सकता है। हालाँकि एक ही परिस्थिति में देश के धन को जोड़ने के लिए मूल्यवान खनिज उपलब्ध हो सकते हैं। नदियों को महंगे पुलों की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन वे सस्ते परिवहन और मौलिक विश्लेषण की परिभाषा बिजली उत्पादन कर सकते हैं। उत्तरी अमेरिका के मध्य को कभी ग्रेट अमेरिकन मरूस्थल कहा जाता था क्योंकि इसमें पेड़ों की कमी थी एवं इसमें खेती करना बहुत ही मुश्किल था। प्रेयरी घासें लगभग छह फीट ऊंची थी, लेकिन भूमि में उपजापन थी । परन्तु लोहे के हल के आविष्कार के साथ, यह भूमि बंजर से लाभदायक हो गई थी। इस प्रकार, अंतिम विश्लेषण में किसी राष्ट्र का अधिकांश अर्थशास्त्र कम से कम कुछ हद तक उसके भूगोल पर निर्भर है। आर्थिक भूगोल के अन्तर्गत उसके कार्य-क्षेत्र, मानव के प्राथमिक एवं गौण व्यवसाय तथा क्रियाएं (शिकार करना, वस्तुएं एकत्रित करना, लकड़ी काटना, मछली पकड़ना, पशुपालन, कृषि करने एवं खनन करने, आदि), विश्व के औद्योगिक प्रदेश एवं उनके प्रमुख उद्योग (लोहा-इस्पात, वस्त्र, आदि), परिवहन के साधन, पत्तन एवं नगरों का विकास तथा व्यापार, आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है।
आर्थिक भूगोल का अध्ययन इस बात की ओर संकेत करता है कि किस स्थान पर कौन सा विशेष उद्योग स्थापित किया जा सकता है। इसके अध्ययन से यह ज्ञात हो सकता है कि विशेष जलवायु के अनुसार किसी देश की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कच्चा माल, भोज्य पदार्थ अथवा यंत्र आदि कहां से प्राप्त किए जा सकते हैं। आर्थिक भूगोल के अध्ययन से इन बातों का भी ज्ञान हो सकता है

  • विश्व के विभिन्न भागों में मानव समुदाय किस प्रकार अपने भौतिक आवश्यकताएं पूरी करता है
  • उसका रहन सहन खान पान वेशभूषा एवं अन्य सामाजिक परंपराएं आदि कैसी है।
  • उसने जीवन स्तर ऊंचा उठाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का किस प्रकार उपयोग किया है।
  • किसी विशेष देश ने किस प्रकार अधिक व्यवस्थित एवं निरंतर आर्थिक उन्नति प्राप्त की है।
  • कोई अन्य देश इतना क्यों पिछड़ा है और किसी की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी क्यों है।

किसी भी देश की उन्नति वहां के वैज्ञानिक, राजनीतिक, अर्थशास्त्री, भूगोलवेत्ता एवं नीति निर्धारक के सहयोग से होती है और इनका सहयोग आर्थिक भूगोल से होता है आर्थिक भूगोल के अन्तर्गत आर्थिक वस्तुओं का उत्पादन, उपभोग का स्थानीयकरण का अध्ययन किया जाता है। आरम्भ में प्रत्येक वस्तु का विश्व वितरण एवं उत्पादन का अध्ययन किया जाता था। इनका भौगोलिक पर्यावरण से सम्बन्ध तथा आर्थिक क्षेत्रों का सीमांकन करना भी इसके अध्ययन में समिलित किया जाता है।

आर्थिक भूगोल की मौलिक विश्लेषण की परिभाषा कई अन्य उपशाखाएं भी हैं-
अ) कृषि भूगोल
ब) वाणिज्य भूगोल
स) संसाधन भूगोल
द) परिवहन भूगोल
य) विनिर्माण उद्योग
कुछ विद्वानों ने आर्थिक भूगोल की परिभाषा इस प्रकार बताई है-
"economic geography मौलिक विश्लेषण की परिभाषा defined as the study of the influence exerted upon the economic activities of man by his physical environment."
(मनुष्य के आर्थिक क्रियाओं पर प्राकृतिक वातावरण का प्रभाव पड़ता है उसके अध्ययन को आर्थिक भूगोल का विषय माना गया है।) Nefarlane
"economic geography is that aspect of the subject which deals with the influence of the environment inorganic and organic on the economic activities of man."
(आर्थिक भूगोल मौलिक विश्लेषण की परिभाषा वह विषय है जिसमें मनुष्य के आर्थिक क्रियाओं पर वातावरण द्वारा डाले हुए प्रभाव का अध्ययन होता है।) Rudmose Brown [३]
इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि अपने वातावरण से प्रभावित होकर मनुष्य जो कार्य करता है उसका अध्ययन ही आर्थिक भूगोल का विषय है इस प्रकार आर्थिक भूगोल के अध्धयन में दो बातों का वर्णन होता है-

  1. भौगोलिक वातावरण-इसके अंतर्गत विश्व की भू रचना जलवायु,प्राकृतिक वनस्पति,खनिज संपत्ती,पशुधन आदि मौलिक विश्लेषण की परिभाषा का वर्णन होता है।
  2. मनुष्य की आर्थिक क्रियाएं- भौगोलिक वातावरण में रहता हुआ मनुष्य उससे प्रभावित होकर जीवन निर्वाह के लिए जो कार्य करता है वह इसके अंतर्गत आता है ऐसे कार्यों में खेती करना,कारखानों में काम करना,लकड़ी काटना,मछली पकड़ना आदि सम्मिलित है।

इसके अंतर्गत हम यह भी जान सकते हैं कि मनुष्य पृथ्वी पर अनेक प्रकार के क्रियाओं में संलग्न है। हम आगे के अध्याय में इस क्रियाओं के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी प्राप्त करेंगे लेकिन उसका छोटा सा रूप इस अध्याय में भी अध्ययन कर लेते हैं । पृथ्वी पर मानव की आर्थिक क्रियाओं का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है वर्तमान में इस समय बहुस्तरीय आर्थिक क्रियाएं सम्मिलित की जाती है।आर्थिक क्रियाएं मुख्यतः चार प्रकार से होती है।

  • प्राथमिक उत्पादन संबंधी क्रियाओं में प्रकृति से प्राप्त संसाधन का सीधा उपयोग होता है जैसे कृषि करना, खाने खोदना, मछली पकड़ना, आखेट करना, वस्तुओं का संचय करना, वन संबंधी उद्योग आदि
  • द्वितीयक उत्पादन क्रियाओं में प्रकृति से प्राप्त संसाधनों का सीधा उपयोग नहीं होता वरन् उनको साफ परिष्कृत अथवा रूप परिवर्तित करके उपयोग होता है जैसे लोहे को गला कर वस्तु बनाना, गेहूं से आटा या मैदा बनाना, कपास और ऊन से कपड़ा बनाना, लकड़ी से फर्नीचर, कागज आदि बनाना।
  • तृतीयक उत्पादन क्रिया में वस्तुओं का परिवहन, संचार और संवादवाहन, वितरण एवं मौलिक विश्लेषण की परिभाषा संस्थाओं और व्यक्तियों की सेवाएं सम्मिलित की जाती है।

सामग्री

भूगोल विषय के कई अंग होते हैं। प्राकृतिक वातावरण का वर्णन प्राकृतिक भूगोल में किया जाता है। मानवीय क्रियाओं का वर्णन मानवीय भूगोल का विषय है इन दोनों का एक दूसरे पर क्या प्रभाव पड़ता है इसका अध्ययन आर्थिक भूगोल का विषय है। इनके अतिरिक्त भिन्न-भिन्न देशों का वर्णन राजनीतिक भूगोल का लाता है पृथ्वी का विस्तार उसकी ग्रहों एवं नक्षत्रों से दूरी आदि का अध्ययन गणित संबंधी भूगोल का विषय है भूगोल के इन दोनों अंगों का संबंध किसी न किसी प्रकार आर्थिक भूगोल से अवश्य है। [४] आर्थिक भूगोल का विषय इतना विस्तृत है कि इसका संबंध न केवल भूगोल के भिन्न-भिन्न अगों से है परंतु अन्य विषय भी इससे संबंधित है। उदाहरण के लिए लोहे के कारखाने का वर्णन करते समय यह बताया जाता है कि लोहा और कोयला कहां मिलता है यह भूगर्भ विद्या का विषय है। कृषि की उपज पढ़ते समय यह ज्ञात किया जाता है कि गेहूं और चावल भिन्न-भिन्न जलवायु में पैदा होते हैं अतः यह जलवायु विज्ञान का विषय है। विश्वत रेखा के निकट है घने वन क्यों है वहीं दूसरी ओर सहारा यूं वृक्ष क्यों नहीं है यह वनस्पति विज्ञान का विषय है।आर्थिक भूगोल में इन सभी विषयों की सहायता लेनी पड़ती है इसलिए आर्थिक भूगोल अनेक विषयों से संबंधित है।

  1. व्यक्ति किसी विशेष क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों के बारे में आसानी से अध्ययन कर सकता है।
  2. एक उपयुक्त क्षेत्र में आर्थिक गतिविधि स्थापित करने का सबसे अच्छा तरीका पता लगाना आसान है।
  3. एक आर्थिक गतिविधि के संदर्भ में भौगोलिक लाभों की पहचान को इसके माध्यम से आसान बनाया जा सकता है अर्थात् भारत को एशिया के किसी भी अन्य देशों की तुलना में सूर्य के प्रकाश का बड़ा लाभ प्राप्त होता है जो एक सौर ऊर्जा पैनल बनाने में मदद करता है ।

विनिर्माण उद्योग किस स्थान से अधिकतम लाभ मिले इसके लिए इसके माध्यम से सर्वेक्षण किया जा सकता है। भौगोलिक स्थिति ने उस क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसके माध्यम से योजना बनाई जा सकती है कि कौन सा व्यवसाय उपयुक्त है या नहीं।
यह कहा जा सकता है कि आर्थिक भूगोल अर्थशास्त्र के साथ उन्मुख है

मुल्यांकन का अर्थ, मौलिक विश्लेषण की परिभाषा परिभाषा और प्रकार

मुल्यांकन (Mulyankan) : यह दो शब्दों से मिलकर बना हैं- मूल्य-अंकन। यह अंग्रेजी के Evaluation शब्द का हिंदी रूपांतरण हैं। मापन जहाँ किसी वस्तु या व्यक्ति के गुणों को अंक प्रदान करता हैं, वही मुल्यांकन मौलिक विश्लेषण की परिभाषा उन अंकों का विश्लेषण करता हैं और उनकी तुलना दूसरों से करके एक सर्वोत्तम वस्तु या व्यक्ति का चयन करता हैं।

आज हम जनिंगे की मूल्यांकन क्या हैं, मूल्यांकन का अर्थ और परिभाषा, मूल्यांकन के प्रकार और मूल्यांकन और मापन में अंतर।

Table of Contents

मूल्यांकन (Mulyankan) क्या हैं?

मूल्यांकन का महत्व हर क्षेत्र में बढ़ता ही जा रहा हैं। वर्तमान समय में इसका उपयोग शिक्षा में, आर्मी में, या सम्मानित पदों में किया जाता हैं। मौलिक विश्लेषण की परिभाषा इसके द्वारा एक उत्तम नागरिक का निर्धारण किया जा सकता हैं। मूल्यांकन Evaluation मापन द्वारा प्राप्त अंकों का विस्तृत अध्ययन करता हैं और यह अध्ययन वह सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक आधार पर करता हैं।

मुल्यांकन (Mulyankan) का अर्थ, परिभाषा और प्रकार

मूल्यांकन दो व्यक्तियों के मध्य उनके गुणों में व्याप्त भिन्नता को ज्ञात करने का भी कार्य करता हैं। इसके द्वारा यह पता चलता हैं कि किस व्यक्ति के अंदर कौन से गुण की मात्रा अधिक हैं।

मूल्यांकन की परिभाषा

मूल्यांकन मौलिक विश्लेषण की परिभाषा की परिभाषा विभिन्न लोगों ने दी हैं जिसमें से कुछ परिभाषा इस प्रकार हैं- किसी वस्तु अथवा क्रिया के महत्व को कुछ सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक मानदण्डों के आधार पर चिन्ह विशेषों में प्रकट करने की प्रक्रिया हैं।

मुल्यांकन mulyankan के प्रकार

1- संरचनात्मक मुल्यांकन
2- योगात्मक मुल्यांकन

1- संरचनात्मक मुल्यांकन – निर्माणाधीन कार्यो के मध्य जब किसी का मूल्यांकन किया जाता है उसे संरचनात्मक मुल्यांकन कहते हैं शिक्षा से इसको देखा जाए तो जब छात्र किसी कक्षा में होते हैं तो उनका यूनिट टेस्ट या टॉपिक टेस्ट लिया जाता हैं उसे ही संरचनात्मक मुल्यांकन (Sanrachnatmak mulyankan) कहा जाता हैं।

2- योगात्मक मुल्यांकन – इसका प्रयोग अंत में किया जाता हैं जैसा कि इसके नाम से ही पता चल रहा हैं योग। अर्थात अंत में जब छात्रों की वार्षिक परीक्षा ली जाती हैं उसे ही योगात्मक मुल्यांकन कहा जाता है

मुल्यांकन और मापन में अंतर

  • मुल्यांकन (mulyankan) किसी वस्तु या व्यक्ति के गुणों का विश्लेषण करता हैं और मापन किसी वस्तु या व्यक्ति के गुण को अंक प्रदान करती हैं जैसे किसी व्यक्ति की लंबाई, चोड़ाई, वजन आदि।
  • मुल्यांकन के 6 पद होते हैं और मापन के 4 पद होते हैं।
  • मापन सिर्फ अंको का निर्धारण करता हैं और मूल्यांकन में उसके अंको को दूसरे व्यक्ति के अंको के साथ उसकी तुलना की जाती हैं।
  • मापन मुल्यांकन का पहला चरण हैं और मुल्यांकन मापन का दूसरा चरण है अर्थात मुल्यांकन से पहले किसी वस्तु या व्यक्ति के गुणों का मापन किया जाता हैं।

शिक्षा में मुल्यांकन की उपयोगिता

मुल्यांकन के द्वारा छात्रों के व्यवहार उनकी रुचि, अभिरुचि का पता लगाया जाता हैं। इसके द्वारा छात्रों के मानसिक स्तर की जांच कर उनको उसके स्तर के अनुसार उन्हें कक्षा आवंटित की जाती हैं।

  • एक कक्षा से दूसरी कक्षा में प्रवेश हेतु मुल्यांकन का प्रयोग किया जाता हैं।
  • इसके द्वारा छात्रों के मध्य उनके गुणों में अंतर कर पाना संभव होता हैं।
  • मुल्यांकन (Mulyankan) के द्वारा छात्रों को मेधावी, मंद-बुध्दि और औसत स्तर में विभक्त कर उन्हें शिक्षा प्रदान की जाती हैं।
  • इसके द्वारा भिन्नता के सिद्धांत का अच्छे से ख्याल रखा जाता हैं, एवं उसके अनुरूप उनका विकास करने हेतु शिक्षण विधियों एवं प्रविधियों का निर्माण किया जाता हैं।

समय के अनुसार मुल्यांकन की प्रक्रिया में भी निरंतर बदलाव किए जाते रहे हैं, किसी भी वस्तु का महत्व तभी पता चलता हैं जब वह वेध हो अर्थात जिस वजह से उसका उपयोग और उसका निर्माण किया गया हैं वह उन उद्देश्यों की प्राप्ति करने में सक्षम हो। इसका पता हम मुल्यांकन द्वारा ही लगाते हैं कि वह वस्तु या व्यक्ति अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सक्षम हैं या नहीं।

दोस्तों आज आपने, मुल्यांकन, मुल्यांकन की परिभाषा, मुल्यांकन के प्रकार, मुल्यांकन और मापन में अंतर (mulyankan kya hai) को जाना हमारी पोस्ट आपके प्रश्नों का उत्तर प्रदान कर रही हो और आप इससे संतुष्ट हुए हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करें।

सर्वेक्षण की परिभाषा क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसर्वेक्षण (Surveying) उस कलात्मक विज्ञान को कहते हैं जिससे पृथ्वी की सतह पर स्थित बिंदुओं का समुचित माप लेकर, किसी पैमाने पर आलेखन (plotting) करके, उनकी सापेक्ष क्षैतिज और ऊर्ध्व दूरियों का कागज या, दूसरे माध्यम पर सही-सही ज्ञान कराया जा सके।

मौलिक अनुसंधान क्या होता है?

इसे सुनेंरोकेंमौलिक अनुसंधान द्वार रचित सिद्धान्तों की मदद से व्यवहारिक समस्याओं का पता लगाया जाता है। का अध्ययन किया जाता है। यहाँ पर अनुसंधानकर्ता का उद्देष्य उस समाज का समूह का अध्ययन उसके विषिष्ट रूप करना होता है। इस प्रकार के अनुसंधान का प्रयोग समाज षास्त्र, समाजकार्य, जनजाति अध्ययन, संस्कृति अध्ययन इत्यादि में किया जाता है।

वर्णनात्मक शोध डिजाइन से आप क्या समझते है?

इसे सुनेंरोकेंवर्णनात्मक अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य वर्तमान दशाओं, क्रियाओं, अभिवृत्तियों तथा स्थिति के विषय केा ज्ञान प्राप्त करना है। वर्णनात्मक अनुसंधानकर्ता समस्या से सम्बन्धित केवल तथ्यों केा एकत्र ही नहीं करता है बल्कि वह समस्या से सम्बन्धित विभिन्न चरों में आपसी सम्बन्ध ढॅँढ़ने का प्रयास करता है साथ ही भविष्यवाणी भी करता है।

सांख्यिकी अनुसंधान के विभिन्न प्रकार क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसांख्यिकीय पद्धतियां अनियत सांख्यिकीय अध्ययन के दो प्रमुख प्रकार हैं, प्रयोगात्मक अध्ययन और अवलोकन अध्ययन.

सामाजिक सर्वेक्षण की परिभाषा क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक जीवन के किसी विशेष पक्ष, विषय, प्रसंग अथवा समस्या के संबंध मे निर्भर योग्य तथ्यों व दलों के संकलन तथा विश्लेषण या निर्वाचन करने की प्रक्रिया है, जो कि वैज्ञानिक सिद्धान्तों व मान्यताओं पर आधारित होने के कारण अनुभव निष्कर्षों को निकालने मे सहायक एवं उपयोगी सिद्ध होता है।

मौलिक अनुसंधान क्या करने की क्षमता दर्शाता है?

इसे सुनेंरोकेंट्रॉम्बे में जीव-विज्ञान में शोध का लक्ष्य अधिक उपज वाली खाद्य फसलों को तैयार करना, फसल की कटाई के बाद टिकाऊ बनाकर नुकसान को समाप्त या कम करना, कम खुराक की कैंसर रेडियोथेरेपि के नए तरीके विकसित करना तथा मूल जीव विज्ञान में आणविक तथा समस्थानिक तकनीकों का प्रयोग कर रोगों का निदान करना है।

वर्णनात्मक से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंएक पाठ एक लिखित या मौखिक प्रवचन है जिसमें आंतरिक सामंजस्य होता है। दूसरी ओर, वर्णनात्मक, वह है जो किसी चीज़ का वर्णन करता है (अर्थात यह जानकारी देता है ताकि लोग इसे अपने मन में प्रस्तुत कर सकें)।

वर्णनात्मक विधि से आप क्या समझते हैं?मौलिक विश्लेषण की परिभाषा

इसे सुनेंरोकेंवर्णनात्मक विधि गुणात्मक विधियों में से एक है जो अनुसंधान में उपयोग किया जाता है जो किसी विशेष आबादी या स्थिति की कुछ विशेषताओं का मूल्यांकन करने का उद्देश्य है. वर्णनात्मक शोध में, जैसा कि इसके नाम से संकेत मिलता है, उद्देश्य श्रृंखला की एक श्रृंखला की स्थिति और / या व्यवहार का वर्णन करना है.

इसे सुनेंरोकेंसर्वेक्षण (Surveying) उस कलात्मक विज्ञान को कहते हैं जिससे पृथ्वी की सतह पर स्थित बिंदुओं की समुचित माप लेकर, किसी पैमाने पर आलेखन (plotting) करके, उनकी सापेक्ष क्षैतिज और ऊर्ध्व दूरियों का कागज या, दूसरे माध्यम पर सही सही ज्ञान कराया जा सके। इस प्रकार का अंकित माध्यम लेखाचित्र या मानचित्र कहलाता है।

शिर्क का मतलब क्या होता है?

इसे सुनेंरोकेंइस्लाम में, शिर्क (अरबी: شرك širk) मूर्तिपूजा या बहुदेववाद का पाप है (अर्थात, अल्लाह के अलावा किसी भी चीज़ या किसी चीज़ का उपासना या पूजा)। इसका अर्थ है, अल्लाह के आराधना में अर किसी को साझेदार बनाना। इसे तौहीद (एकेश्वरवाद) कहा जाता है।

मुशरिक कौन है?

इसे सुनेंरोकेंआपको बता दें कि मुशरिक का अर्थ मूर्तिपूजक होता है जो कुरान में लिखा हुआ है। अब बात करें मूर्ति पूजक की तो वह हिन्दू धर्म और सनातन धर्म के लोग है जो मूर्ति की पूजा करते हैं। जो लोग ईश्वर को मानते हैं उनकी हमेशा यही दलील होती है कि वह मूर्ति को नहीं बल्कि उसमे अपने ईश्वर को बसाकर उनकी पूजा करते हैं।

शिर्क और कुफ्र क्या है?

इसे सुनेंरोकेंकुफ्र और शिर्क में क्या अंतर है? – Quora. “अल्लाह को न मानना” कुफ्र है और “न मानने वाला इंसान” काफ़िर कहलाता है। जो अल्लाह को मानता है लेकिन उसके अलावा भी किसी और को भी उसी के समान मानता है तो उसे शिर्क कहा जाता है अल्लाह के साथ किसी और को शरीक करने को ही शिर्क कहते हैं।

इसे सुनेंरोकेंसर्वेक्षण (Surveying) उस कलात्मक विज्ञान को कहते हैं जिससे पृथ्वी की सतह पर स्थित बिंदुओं का समुचित माप लेकर, किसी पैमाने पर आलेखन (plotting) करके, उनकी सापेक्ष क्षैतिज और ऊर्ध्व दूरियों का कागज या, दूसरे माध्यम पर सही-सही ज्ञान कराया जा सके। इस प्रकार का अंकित माध्यम ‘लेखाचित्र’ या मानचित्र कहलाता है।

मानवाधिकार की परिभाषा

मानवाधिकार से तात्पर्य व्यक्ति के ऐसे अधिकारो से है जो जीवन स्वतंत्रता , समता एवं गरिमा से सम्बन्ध्ति है तथा संविधान द्वारा अथवा अंतर्राष्ट्रीय प्रसविदातओं द्वारा प्रत्यामूल किये गये हैं तथा भारतीय न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय है ।

मानवाधिकार की उपयुक्त परिभाषा का विश्लेषण किया जाये तो इसके निम्लिखित अवयव प्राप्त होते हैं ।

1. यह अधिकार व्यक्ति के जीवन,स्वतंत्रता , समानता एवं गरिमा से सम्बन्ध्ति हैं ।

2. ये अधिकार भारतीय संविधान द्वारा प्रस्तावित किये गए हैं या

3. ये अधिकार अन्तर्राष्ट्रीय प्रसविदाताओ द्वारा प्रत्याभूत किये गये है तथा

4 ये अधिकार भारतीय न्यायालयों द्वारा परिवर्तनीय हैं ।

उपरोक्त अधिकारों का हनन जिस व्यक्ति का होता है उस व्यक्ति को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 18 (3) अंतर्गत क्षतिपूर्ति की अनुशंसा कर सकता है । जो इस प्रकार है:

धारा 18 (3 ) के अंतर्मागत अंतरिम क्षतिपूर्ति हेतु अनुशंसा करने की शक्ति मानवाधिकार हनन के मामलों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का लक्ष्य केवल दोषी व्यक्तियों को दंडित कराना ही नहीं होता है अपितु उसका लक्ष्य पीडित एवं क्षुब्ध् व्यक्तियों को तत्काल राहत प्रदान कराना भी होता है । कई ऐसे मामले होते है जिनमें पीड़ित व्यक्तियों को तत्काल अन्तरिम सहायता की आवश्यकता होती है । राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग परिषद की जांच के पशचात यदि इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि मानवाधिकार का हनन हुआ है तो पीडित एवं क्षुब्ध् व्यक्ति को तत्काल अंतरिम क्षतिपूर्ति प्रदान करने हेतु धारा 18 के खण्ड (3) के अन्तर्गत सम्बन्ध्ति सरकार अथवा प्राधिकारी से अनुसशंसा कर सकता है ।

मौलिक अधिकार संरक्षण’’

मौलिक अधिकार संरक्षण क्या है ? इनकी संख्या कितनी है ? प्रत्येक किस अनुच्छेद के अंर्तगत आता है ? किस प्रकार इनसे संरक्षण प्राप्त किया जा सकता है ?

मौलिक अधिकार हमारे वे अधिकार है जो संविधन में लिखित है । अगर कोई इनका उल्लंघन करता है तो उसे दण्डीत किया जायेगा, चाहे वह किसी भी प्रभाव के पद पर आसीन हो, मौलिक अधिकार जिनकी संख्या कोई ज्यादा नहीं है ।

प्रत्येक अधिकार को नियमित रूप से परिभाषित किया गया है । मानव के छः मौलिक अधिकार को संविधन में 42वें संशोधन द्वारा 1976 में शामिल किया गया। मौलिक अधिकारों को मौलिक अधिकार इसलिए कहा गया क्योंकि यह व्यक्ति के विकास के लिए अति आवश्यक होते हैं । इस कारण इन्हे संविधान में सम्मिलित किया गया है । मौलिकअधिकारोंको आपातकालीन स्थिती के हटाए जाने के बाद मौलिक अधिकारोंको लागू कर दिया जाता है ।

नागरिकों को संविधानिकअधिकारोंकी रक्षा हेतु न्यायालय व उच्चतमन्यायालयों तक पहुँच कर अपील कर सकते हैं । इसमें न्यायालयों का यह कर्तव्य होगा कि वह लोगों के अधिकारों की रक्षा हेतु प्रलेख जारी कर सकते हैं । प्रमादेश प्रलेख द्वारा न्यायालय किसी व्यक्ति अथवा संस्था को उसके सार्वजनिक दायित्वों तथा कर्तव्यों को लागू करने का आदेश दे सकता है

मानव अधिकारों से अभिप्राय मौलिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता से है जिसके सभी मानव प्राणी हकदार है। अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं के उदाहरण के रूप में जिनकी गणना की जाती है, उनमें नागरिक और राजनैतिक अधिकार सम्मिलित हैं जैसे कि जीवन और आजाद रहने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के सामने समानता एवं आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के साथ ही साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार, भोजन का अधिकार काम करने का अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार .

अनेक प्राचीन दस्तावेजों एवं बाद के धार्मिक और दार्शनिक पुस्तकों में ऐसी अनेक अवधारणाएं है जिन्हें मानवाधिकार के रूप में चिन्हित किया जा सकता है। ऐसे प्रलेखों में उल्लेखनीय हैं अशोक के आदेश पत्र, मुहम्मद (saw) द्वारा निर्मित मदीना का संविधान (meesak-e-madeena) आदि.

आधुनिक मानवाधिकार कानून तथा मानवाधिकार की अधिकांश अपेक्षाकृत व्यवस्थाएं समसामयिक इतिहास से संबंध हैं। द ट्वेल्व आर्टिकल्स ऑफ़ द ब्लैक फॉरेस्ट (1525) को यूरोप में मानवाधिकारों का सर्वप्रथम दस्तावेज़ माना जाता है। यह जर्मनी के किसान - विद्रोह (Peasants War) स्वाबियन संघ के समक्ष उठाई गई किसानों की मांग का ही एक हिस्सा है। ब्रिटिश बिल ऑफ़ राइट्स ने युनाइटेड किंगडम में सिलसिलेवार तरीके से सरकारी दमनकारी कार्रवाइयों को अवैध करार दिया. 1776 में संयुक्त राज्य में और 1789 में फ्रांस में 18 वीं शताब्दी के दौरान दो प्रमुख क्रांतियां घटीं. जिसके फलस्वरूप क्रमशः संयुक्त राज्य की स्वतंत्रता की घोषणा एवं फ्रांसीसी मनुष्य की मानव तथा नागरिकों के अधिकारों की घोषणा का अभिग्रहण हुआ। इन दोनों क्रांतियों ने ही कुछ निश्चित कानूनी अधिकार की स्थापना की।

मानवाधिकारों को लेकर अक्सर विवाद बना रहता है। ये समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि क्या वाकई में मानवाधिकारों की सार्थकता है। यह कितना दुर्भाग्यपू्‌र्ण है कि तमाम प्रादेशिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकारी और गैर सरकारी मानवाधिकार संगठनों के बावजूद मानवाधिकारों का परिदृश्य तमाम तरह की विसंगतियों और विद्रूपताओं से भरा पड़ा है। किसी भी इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है मानवाधिकार है। भारतीय संविधान इस अधिकार की न सिर्फ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोड़ने वाले को अदालत सजा देती है।

रेटिंग: 4.98
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 360
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा| अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *