डॉलर को क्या प्रभावित करता है

Rupee vs Dollar: अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा रुपया, एक डॉलर की कीमत बढ़कर हुई 82.20 रुपये
नई दिल्ली: डॉलर के मुकाबले में रुपये (Rupee vs Dollar) में गिरावट का दौर बदस्तूर जारी है। रुपया लगातार गिरावट का अपना पिछला रिकॉर्ड तोड़कर नया रिकॉर्ड बना रहा है। आज एकबार फिर रुपए में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। इस गिरावट के साथ ही डॉलर के मुकाबले रुपया एकबार फिर अबतक के अपने सबसे निचले स्तर (Rupee at Record Low) पर पहुंचा गया है।
आज (7 October) को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 32 पैसे गिरकर अब तक के सबसे निचले स्तर 82.20 रुपए पर खुला है। इससे पहले पिछले कारोबारी दिन गुरुवार 6 अक्टूबर को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 36 पैसे की कमजोरी के साथ 81.88 रुपये के स्तर पर बंद हुआ।
क्या होगा असर
रुपये के कमजोर होने से देश में आयात महंगा हो जाएगा। इससे कारण विदेशों से डॉलर को क्या प्रभावित करता है आने वाली वस्तुओं जैसे- कच्चा तेल, मोबाइल, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स आदि महंगे हो जाएंगे। अगर रुपया कमजोर होता हैं तो विदेशों में पढ़ना, इलाज कराना और घूमना भी महंगा हो जाएगा।
डॉलर की मांग और आपूर्ति से तय होती है रुपये की कीमत
गौरतलब है कि रुपये की कीमत इसकी डॉलर के तुलना में मांग और आपूर्ति से तय होती है। इसके साथ ही देश के आयात और निर्यात पर भी इसका असर पड़ता है। हर देश अपने विदेशी मुद्रा का भंडार रखता है। इससे वह देश के आयात होने वाले सामानों का भुगतान करता है। हर हफ्ते रिजर्व बैंक इससे जुड़े आंकड़े जारी करता है। विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति क्या है, और उस दौरान देश में डॉलर की मांग क्या है, इससे भी रुपये की मजबूती या कमजोरी तय होती है।
यूएस फेड ने ब्याज दरों में की है बढ़ोतरी
जानकारों के मुताबिक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में ताजा गिरवाट की वजह वजह यूएस फेड के द्वारा ब्याज दरों को बढ़ाया जाना है। वहीं विदेशी मुद्रा कारोबारियों के मुताबिक विदेशी बाजारों में अमेरिकी डॉलर की मजबूती और घरेलू शेयर बाजार में गिरावट का स्थानीय मुद्रा पर असर पड़ा है। इसके अलावा कच्चे तेल के दामों में मजबूती और निवेशकों की जोखिम न लेने की प्रवृत्ति ने भी रुपये को प्रभावित किया है।
अमेरिका में ब्याज दरें में बढ़ोतरी का असर!
- महंगाई को नियंत्रित करने के लिए लगातार तीसरी बार ब्याज दरें बढ़ी हैं। गौरतलब है कि यूएस फेड ने मंहगाई को नियंत्रित करने के 0.75 बेसिस प्वाइंट ब्याज दर बढ़ाया है। इससे अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ाकर 3-3.25 फीसदी हो गई है।
- यूएस फेड के द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी का असर दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर देखने को मिल रही है। गौरतलब रुपये की स्थिति को मजबूत बनाने के लिए केंद्रीय बैंक ने जुलाई में 19 अरब डॉलर के रिजर्व को बेच दिया था। लेकिन स्थिति बहुत बेहतर नहीं हुई है।
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'रुपया कमजोर नहीं हो रहा,डॉलर मजबूत हो रहा', निर्मला सीतारमण का बयान पूरा सच है?
FM Nirmala Sitaraman का बयान लोगों को रोजमर्रा की जिंदगी में सहूलियत नहीं देता है.
"गिरता रुपया बोझ बढ़ा रहा है. सरकार ईंधन की कीमतें नियंत्रित कर रही है. ये घबराहट पैदा करने के लिए सरकार जिम्मेदार है. क्या सरकार इस जिम्मेदारी से बच सकती है?"
जरा अनुमान लगाइए ये बात किसने कही थी? ये निर्मला सीतारमण ही थीं जिन्होंने 2 सितंबर 2013 को यह ट्वीट किया था. तब वो विपक्षी दल बीजेपी की प्रवक्ता थीं. अब, वो अपनी सत्ताधारी पार्टी की वित्त मंत्री हैं और गिरते रुपया पर बयान को लेकर चर्चा में हैं. सब तरफ हाहाकार मचा हुआ है लेकिन वो अपनी ही धुन में हैं.
निर्मला सीतारमण ने कहा कि भारतीय रुपया ने दूसरे इमर्जिंग मार्केट की करेंसी की तुलना में ज्यादा बेहतर प्रदर्शन किया है.
FM: रुपए की वैल्यू में 10% की गिरावट ज्यादा चिंताजनक बात नहीं है. इस बात के बावजूद की अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने से अमेरिका की तरफ पैसे का फ्लो ज्यादा बढ़ रहा है और डॉलर मजबूत हो रहा है.
डॉलर की कीमतें बढ़ने से इंपोर्ट पर असर पड़ता है और इंपोर्ट के लिए ज्यादा कीमतें चुकानी पड़ती हैं. कमजोर रुपए का सीधा मतलब तेल कीमतों के लिए भारत को ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं.
किसी भी इकनॉमी की वैश्विक मजबूती इस बात से ही तय होती है कि वो कितना एक्सपोर्ट करती है और खासकर राष्ट्रीय आय (GDP) में इसका कितना हिस्सा है.
एक बढ़िया फॉरेन एक्सचेंज पॉलिसी लंबी अवधि में देश की मुकाबला करने की क्षमता को कमजोर नहीं करती है. आप सिर्फ चीन को ही देखिए, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ कड़ी टक्कर लेता रहता है डॉलर को क्या प्रभावित करता है और सरकार जानबूझकर चीनी करेंसी रॅन्मिन्बी को कमजोर रखती है.
BJP समर्थक अक्सर राष्ट्रवादी जोश में कहते हैं कि एक मजबूत मुद्रा एक मजबूत अर्थव्यवस्था का संकेत देती है, लेकिन अक्सर चीन से आगे निकलने के अपनी जिद के बावजूद यह भूल जाते हैं कि एक कमजोर करेंसी एक्सपोर्ट को प्रोत्साहित करती है और इंपोर्ट को रोकती है.
रुपया-डॉलर का ग्राफ क्या इशारा करता है
यहां हम आपको बता देते हैं कि पिछले हफ्ते आखिर उन्होंने क्या कहा था: “सबसे पहले, मैं इसे ऐसे देखना चाहूंगी कि रुपया कमजोर नहीं हो रहा है, बल्कि डॉलर लगातार मजबूत होता जा रहा है." फिर इसी पद पर यानि कभी वित्त मंत्री रहे और अब विपक्ष के नेता कांग्रेसी पी चिदंबरम ने निर्मला सीतारमण के बयान पर प्रतिक्रिया देने में देरी नहीं की और कहा " एक उम्मीदवार या पार्टी जो चुनाव हारती है, वह हमेशा कहेगी. हम चुनाव नहीं हारे, लेकिन दूसरी पार्टी ने चुनाव जीता."
"मैं तकनीकी पहलू नहीं समझा रही, लेकिन यह तथ्य है कि भारत का रुपया शायद इस डॉलर की दर में बढ़ोतरी का सामना कर पा रहा है, डॉलर को मजबूत करने के पक्ष में अभी एक्सचेंज रेट है और मुझे लगता है कि भारतीय रुपये ने कई दूसरे इमर्जिंग इकनॉमी की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है.”
निर्मला सीतारमण सही हैं लेकिन क्या ये पूरा सच है? फिर ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि उनकी बात भारत की रोजाना की आर्थिक जिंदगी के लिए कितनी प्रासंगिक है? रुपए की वैल्यू को लेकर इतना हंगामा क्यों मचाना?
ग्लोबल इकनॉमी में डॉलर का कैसे है वर्चस्व ?
ये वो सवाल है जिनका बेहतर जवाब पॉपुलर जोक के जरिए समझा जा सकता है?
सवाल: क्या आप सिंगल हैं?
जवाब: कौन पूछ रहा है इस पर निर्भर करता है .
बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आप एक्सपोर्टर हैं या फिर इंपोर्टर या फिर दोनों का मिक्स..या फिर इंपोर्टेड प्रोडक्ट के कंज्यूमर. यदि आप फ्रेंच पनीर या इतालवी ओलिव पसंद करते हैं, तो आप अमेरिकी डॉलर में सामान नहीं खरीद रहे होंगे, लेकिन पिछले एक साल में अमेरिकी मुद्रा की तुलना में रुपये के मूल्य में लगभग 10% की गिरावट अभी भी आपको चिंतित करेगी क्योंकि अधिकांश फॉरेन बिल अभी भी प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष तौर पर डॉलर में होते हैं. अनौपचारिक रूप से, डॉलर राजा है और यह एक ऐसी चीज है जिसका सिक्का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में चलता है. यह सच है कि अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने से उस देश की तरफ पूंजी का फ्लो ज्यादा होता है और इससे डॉलर और मजबूत होता है लेकिन इस मामले में इतना ही सबकुछ नहीं है. इसके अलावा और भी बहुत कुछ है जिस पर ध्यान देना जरूरी है.
वित्त मंत्री सच बता रही थीं, लेकिन वो आधा सच ही था, क्योंकि महंगा डॉलर उन सबका बजट बिगाड़ता है जो भारत में सामान इंपोर्ट करते हैं. एक कमजोर रुपया का सीधा मतलब तेल के लिए ज्यादा पैसे चुकाना और तेल के लिए ज्यादा पैसे भरने का असर हमारी दूसरी हर छोटी-बड़ी हर चीज जिसका ट्रांसपोर्ट होता है उस पर दिखता है.
एक्सचेंज रेट और इकनॉमी में गहरा नाता
2013 में उन्होंने जो ट्वीट किए थे, आपको सिर्फ उसको देखना चाहिए जो आज के संदर्भ में भी काफी हद तक सही हैं. लेकिन अगर आप एक एक्सपोर्टर हैं, तो चीजें साफ साफ दिख सकती हैं क्योंकि बिल आप अमेरिकी डॉलर में भर रहे हैं. उदाहरण के लिए सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट जो वॉल स्ट्रीट या सिलिकॉन वैली के क्लाइंट को सेवाएं दे रहा है उसके बिल से भी सब समझ में आ जाएगा.
वास्तव में, आप तर्क दे सकते हैं कि एक हेल्दी एक्सचेंज रेट पॉलिसी ऐसी है कि यह एक्सपोर्टर्स का जोश कम नहीं करती है क्योंकि लंबे समय में, एक अर्थव्यवस्था की वैश्विक ताकत इस बात से निर्धारित होती है कि वह कितना एक्सपोर्ट कर सकती है और, विशेष रूप से नेशनल इनकम (GDP) में इसका क्या हिस्सा रहता है. कितना कम वो इंपोर्ट करते हैं ताकि व्यापार घाटा और इसके भी ज्यादा, चालू खाता घाटा यानी CAD (जिसमें रेमिटेंस और पर्यटन आय भी शामिल है) व्यापक रूप से बढ़ ना जाए.
रुपए में उठापटक की वजह क्या?
चालू वित्तीय साल 2022-23 की अप्रैल-जून तिमाही में भारत का करेंट अकांउट डेफिसिट 23.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 2.8%) दर्ज किया गया जो जनवरी-मार्च तिमाही में 13.4 बिलियन डॉलर (जीडीपी का 1.5%) से ज्यादा) है. एक साल पहले के नंबर से यह 6.6 डॉलर को क्या प्रभावित करता है बिलियन डॉलर (जीडीपी का 0.9%) ज्यादा है.
आप पहली तिमाही में जो CAD है उसका ठीकरा यूक्रेन युद्ध से पैदा हुए तनाव पर फोड़ सकते हैं और फिर एक साल पहले के सरप्लस घाटा को कोविड -19 महामारी से जुड़ी कम आर्थिक गतिविधियों का नतीजा बता सकते हैं लेकिन एक सामान्य तथ्य यहां पर यह है कि जुलाई-सितंबर तिमाही में भी ज्यादा संभावनाएं नहीं हैं. कमजोर भारतीय रुपये के कारण पहली तिमाही जितना व्यापक घाटा भले ही ना हो लेकिन घाटा बढ़ा ही है.
फिर भी इस बात को दिमाग में रखना महत्वपूर्ण है कि हेल्दी फॉरेन एक्सचेंज पॉलिसी ऐसा कुछ नहीं है कि लंबी अवधि में यह प्रतिस्पर्धा की क्षमता को प्रभावित करती है. आप सिर्फ चीन पर नजर डालें, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ लगातार संघर्ष में रहता है और चीनी सरकार अपनी करेंसी ‘रेनमिनीबी’ को कमजोर बनाए रखती है.
एक बार फिर ऐतिहासिक स्तर पर फिसला रुपया, डॉलर इंडेक्स का ऐसा है हाल
Rupee vs Dollar: शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने शुक्रवार को शुद्ध रूप से 2,899.68 करोड़ रुपये के शेयर बेचे। ग्लोबल तेल बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड वायदा 0.58 फीसदी गिरकर 85.65 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया।
नई दिल्ली। अमेरिकी मुद्रा की मजबूती के बीच सोमवार को शुरुआती कारोबार में भारतीय रुपया (Rupee vs Dollar) 43 पैसे फिसलकर 81.52 के अब तक के निचले स्तर पर आ गया। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया 81.47 के स्तर पर खुला। इसके बाद यह गिरकर 81.52 के स्तर पर आ गया। इस तरह पिछले सत्र के बंद भाव की तुलना में यह 43 पैसे फिसला। मालूम हो कि शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 30 पैसे टूटकर 81.09 के स्तर पर बंद हुआ था।
इन कारकों से प्रभावित हुआ भारतीय रुपया
निवेशकों के बीच रिस्क से बचने की भावना से भारतीय रुपये पर दबाव बना। इस संदर्भ में विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने बताया कि यूक्रेन संकट की वजह से भू-राजनीतिक जोखिम बढ़ने से, डोमेस्टिक शेयर मार्केट में गिरावट से और विदेशी फंड की निकासी की वजह से डॉलर को क्या प्रभावित करता है भी निवेशकों के रुख में नरमी आई हैं।
डॉलर इंडेक्स का ऐसा है हाल
इसबीच डॉलर इंडेक्स की बात करें, तो छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.67 फीसदी की बढ़त के साथ 113.94 के स्तर पर पहुंच गया। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा नवीनतम मौद्रिक नीति को सख्त करने से भी डॉलर को समर्थन मिला है। इससे भारत के रुपये के साथ ही ग्लोबल स्तर पर अन्य प्रमुख मुद्राएं कमजोर हुई हैं।
उल्लेखनीय है कि यूएस फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) ने हाल ही में रेपो रेट में 75 आधार अंकों की वृद्धि की थी। यह फेड द्वारा लगातार तीसरी वृद्धि है।
क्या होगा इसका असर?
रुपये में गिरावट का सबसे बड़ा असर इम्पोर्ट पर होगा। आयातकों को अब आयात के लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी। दरअशर रुपये की गिरावट से आयात महंगा हो जाएगा। मौजूदा समय में भारत क्रूड ऑयल, कोयला, प्लास्टिक सामग्री, केमिकल, इलेक्ट्रॉनिक सामान, वनस्पति तेल, फर्टिलाइजर, मशीनरी, सोना, आदि सहीत बहतु कुछ आयात करता है। रुपये के मूल्य में गिरावट से एक्सपोर्ट सस्ता होगा।
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Why to invest in gold
सोने के दाम रोज तय होते हैं. उस दिन का महत्वपूर्ण कारक सोने की कीमत को प्रभावित करता है. इसलिए निवेशकों को सोने को लंबी अवधि के निवेश के रूप में देखना चाहिए. यहां से अगले दो से तीन साल में सोने में दस से बारह फीसदी रिटर्न मिलने की उम्मीद है. पीएनजी संस के निदेशक-सीईओ और कमोडिटी एक्सपर्ट अमित मोडक ने यह राय व्यक्त की है. पिछले कुछ दिनों से सोने-चांदी की कीमतों में लगातार बदलाव हो रहा है. विश्व स्तर पर अस्थिरता है. महंगाई बढ़ रही है. रुपये का अवमूल्यन हो रहा है. इस पृष्ठभूमि में, भविष्य में सोना-चांदी कैसे आगे बढ़ सकता है. इस विषय पर अमित मोडक के साथ विशेष साक्षात्कार प्रस्तुत है.
मोडक - दुनियाभर में हो रही कई घटनाओं के चलते सोने की कीमतें ऊपर-नीचे जा रही हैं. इसका एक प्रमुख कारण रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध है. चर्चा है कि समाधान निकाला जाएगा. लेकिन, कुछ दिनों से युद्ध के और तेज होने की संभावना बढ़ रही है. साथ ही चीन ने ताइवान को लेकर एक बार फिर खुलकर अपने रुख की घोषणा की है. इससे आशंका जताई जा रही है कि वैेिशक महंगाई का संकट और तेज हो जाएगा. यह मुद्रा को प्रभावित करेगा और साथ ही सोने की कीमत को प्रभावित करेगा. इसके अलावा फेडरल बैंक की ब्याज दर में बदलाव से भी सोने की कीमत ऊपर और नीचे जाती है.
मोडक - रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध और अन्य अस्थिरता के कारण विश्व बाजार में तिलहन, कच्चे तेल, गेहूं जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं की आपूर्ति बाधित हुई है. इसका असर यूरोप में दिखना शुरू हो गया है. ब्रिटेन में महंगाई रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई है. अगर स्थिति बिगड़ती है तो विश्व बाजार में खाद्यान्न और तेल की कीमतें बढ़ेंगी. जिससे महंगाई बढ़ेगी. जिससे सोने की कीमत में वृद्धि होगी. दिसंबर- जनवरी के महीने में ब्रिटेन और यूरोप में मंदी का अनुमान है. इसका असर वैेिशक बाजार पर पड़ेगा. इसलिए सोने के दरों में तेजी आ सकती है. क्योंकि निवेशक वित्तीय अस्थिरता के दौरान एक सुरक्षित निवेश विकल्प के रूप में सोने की ओर रुख करते हैं. नतीजतन, सोने की कीमत बढ़ जाती है. ऐसा पहले भी हो चुका है.
मोडक - डॉलर का डोलेक्स बढ़ रहा है. यह 40 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. डॉलर का विनिमय मूल्य अन्य मुद्राओं के मुकाबले बढ़ रहा है. इससे सोने की कीमत पर विपरीत असर पड़ सकता है. यानी वर्तमान में सोने को प्रभावित करने वाले सकारात्मक और नकारात्मक दोनों कारक मौजूद हैं. अमेरिका में फेडरल रिजर्व ब्याज दरें बढ़ा रहा है. पिछली दो बैठकों में इनमें पौने-पौने प्रतिशत की वृद्धि हुई है. अगर फेडरल रिजर्व आगामी बैठक में ब्याज दर में फिर से पौने फीसदी (यानी 75 पैसे) की बढ़ोतरी करता है तो सोने की कीमत गिर सकती है. क्योंकि, अगर डॉलर की मांग बढ़ती है, तो बांड यील्ड (रिटर्न) और डोलेक्स में वृद्धि होगी. इसका असर सोने पर पड़ सकता .
मोडक - महंगाई, युद्ध, डॉलर का मूल्य, फेडरल रिजर्व का अपेक्षित निर्णय, भले ही सब कुछ मान लिया जाए, फिर भी सोने की कीमत दैनिक आधार पर निर्धारित की जाती है. यह ध्यान में रखना चाहिए. साथ ही, सोने की कीमत उस समय जो भी कारक अधिक महत्वपूर्ण होता है, उससे प्रभावित होती है. यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध की आशंका के बावजूद 10 अक्टूबर को सोने की कीमतों में तेजी आई. इससे यह देखा जा सकता है कि सोने की कीमत उस दिन के प्रभाव के अनुसार निर्धारित होती है. इसलिए निवेशकों को सोने को लंबी अवधि के निवेश के रूप में देखना चाहिए. यहां से अगले दो से तीन साल में सोने में दस से बारह फीसदी रिटर्न मिलने की उम्मीद है.
मोडक - दुनियाभर में हो रही कई घटनाओं के चलते सोने की कीमतें ऊपर-नीचे जा रही हैं. इसका एक प्रमुख कारण रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध है. चर्चा है कि समाधान निकाला जाएगा. लेकिन, कुछ दिनों से युद्ध के और तेज होने की संभावना बढ़ रही है. साथ ही चीन ने ताइवान को लेकर एक बार फिर खुलकर अपने रुख की घोषणा की है. इससे आशंका जताई जा रही है कि वैेिशक महंगाई का संकट और तेज हो जाएगा. यह मुद्रा को प्रभावित करेगा और साथ ही सोने की कीमत को प्रभावित करेगा. इसके अलावा फेडरल बैंक की ब्याज दर में बदलाव से भी सोने की कीमत ऊपर और नीचे जाती है.
मोडक - रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध और अन्य अस्थिरता के कारण विश्व बाजार में तिलहन, कच्चे तेल, गेहूं जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं की आपूर्ति बाधित हुई है. इसका डॉलर को क्या प्रभावित करता है असर यूरोप में दिखना शुरू हो गया है. ब्रिटेन में महंगाई रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई है. अगर स्थिति बिगड़ती है तो विश्व बाजार में खाद्यान्न और तेल की कीमतें बढ़ेंगी. जिससे महंगाई बढ़ेगी. जिससे सोने की कीमत में वृद्धि होगी. दिसंबर- जनवरी के महीने में ब्रिटेन और यूरोप में मंदी का अनुमान है. इसका असर वैेिशक बाजार पर पड़ेगा. इसलिए सोने के दरों में तेजी आ सकती है. क्योंकि निवेशक वित्तीय अस्थिरता के दौरान एक सुरक्षित निवेश विकल्प के रूप में सोने की ओर रुख करते हैं. नतीजतन, सोने की कीमत बढ़ जाती है. ऐसा पहले भी हो चुका है.
मोडक - डॉलर का डोलेक्स बढ़ रहा है. यह 40 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. डॉलर का विनिमय मूल्य अन्य मुद्राओं के मुकाबले बढ़ रहा है. इससे सोने की कीमत पर विपरीत असर पड़ सकता है. यानी वर्तमान में सोने को प्रभावित करने वाले सकारात्मक और नकारात्मक दोनों कारक मौजूद हैं. अमेरिका में फेडरल रिजर्व ब्याज दरें बढ़ा रहा है. पिछली दो बैठकों में इनमें पौने-पौने प्रतिशत की वृद्धि हुई है. अगर फेडरल रिजर्व आगामी बैठक में ब्याज दर में फिर से पौने फीसदी (यानी 75 पैसे) की बढ़ोतरी करता है तो सोने की कीमत गिर सकती है. क्योंकि, अगर डॉलर की मांग बढ़ती है, तो बांड यील्ड (रिटर्न) और डोलेक्स में वृद्धि होगी. इसका असर सोने पर पड़ सकता .
मोडक - महंगाई, युद्ध, डॉलर का मूल्य, फेडरल रिजर्व का अपेक्षित निर्णय, भले ही सब कुछ मान लिया जाए, फिर भी सोने की कीमत दैनिक आधार पर निर्धारित की जाती है. यह ध्यान में रखना चाहिए. साथ ही, सोने की कीमत उस समय जो भी कारक अधिक महत्वपूर्ण होता है, उससे प्रभावित होती है. यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध की आशंका के बावजूद 10 अक्टूबर को सोने की कीमतों में तेजी आई. इससे यह देखा जा सकता है कि सोने की कीमत उस दिन के प्रभाव के अनुसार निर्धारित होती है. इसलिए निवेशकों को सोने को लंबी अवधि के निवेश के रूप में देखना चाहिए. यहां से अगले दो से तीन साल में सोने में दस से बारह फीसदी रिटर्न मिलने की उम्मीद है.