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अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है

अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है
अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है? | International Business menaing in Hindi Reviewed by Thakur Lal on दिसंबर 16, 2020 Rating: 5

अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है

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राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की जीवन रेखाएं

व्यापार से आप क्या समझते हैं? .

Solution : दो या अधिक पक्षों के बीच के व्यावसायिक गतिविधियों को व्यापार कहते हैं। देश के अंदर होने वाले व्यापार को स्थानीय व्यापार कहते हैं। दो देशों के बीच के व्यापार को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का अर्थ, महत्व/लाभ, हानियां

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का अर्थ (antarrashtriya vyapar ka arth)

antarrashtriya vyapar arth mahatva labha haniya;एक ही देश के विभिन्न क्षेत्रों, स्थानों या प्रदेशों के बीच होने वाला व्यापार "घरेलू" "आंतरिक व्यापार" कहलाता भै। इसके विपरीत, दो या अधिक देशो के बीच होने वाला व्यापार "अंतर्राष्ट्रीय व्यापार" या विदेशी व्यापार कहलाता है।

अन्य शब्दों मे," जब वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय दो भिन्न देशो के मध्य जल, थल तथा वायु मार्गों द्वारा होता है तो उसे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कहते है। जैसे-- अगर भारत, इंग्लैंड के साथ व्यापार करे वह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार होगा।

फ्रेडरिक लिस्ट के अनुसार," घरेलू व्यापार हम लोगो के बीच होता है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हमारे और उनके बीच होता है।"

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का महत्व/लाभ

1. श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण के लाभ

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भौगोलिक श्रम विभाजन के कारण कुल विश्व उत्पादन अधिकतम किया जा सकता है, क्योंकि प्रत्येक देश उन्ही वस्तुओं का उत्पादन करता है, जिसमे उसे अधिकतम योग्यता एवं कुशलता प्राप्त होती है। इसके फलस्वरूप उत्पादन की अनुकूलतम दशाएं प्राप्त हो जाती है और उत्पादन अधिकतम होता है।

2. साधनों का पूर्ण उपयोग

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मे एक देश मे सिर्फ उन्ही उद्योग-धंधो की स्थापना की जाती है, जिनके लिए जरूरी साधन देश मे उपलब्ध होते है। इससे देश मे उपलब्ध साधनों का पूर्ण उपयोग होने लगता है एवं राष्ट्रीय आय मे वृद्धि होती है।

3. उत्पादन कुशलता मे वृद्धि

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मे प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र स्पष्ट से बढ़कर संपूर्ण विश्व हो जाता है। विश्वव्यापी प्रतियोगिता मे सिर्फ वे ही उद्योग जीवित रहते है जिनके उत्पादन की किस्म उच्च तथा कीमत कम होती है। अतः हर देश अपने उद्योग-धंधो को जीवित रखने तथा उनका विस्तार करने हेतु कुशलतम उत्पादन को अपनाता है। इससे देश की उत्पादन तकनीक मे सुधार होता है।

4. संकटकाल मे सहायता

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण कोई भी देश आर्थिक संकट का आसानी से सामना कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी देश मे अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो वह देश, विदेशों से खाद्यान्न आयात करके अकाल का सामना कर सकता है।

5. रोगजार तथा आय मे वृद्धि

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मे वस्तुओं का उत्पादन सिर्फ घरेलू मांग को पूरा करने के लिए ही नहीं होता है वरन् विदेशों मे बेचने हेतु भी वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। इससे राष्ट्रीय उत्पादन मे वृद्धि के कारण लोगो की आय बढ़ जाती है। ज्यादा उत्पादन के लिए ज्यादा मजदूरों की जरूरत होती है फलस्वरूप रोजगार स्तर मे भी वृद्धि हो जाती है।

6. एकाधिकारों पर रोक

विदेशी व्यापार के कारण देश मे एकाधिकारी व्यवसाय पनप नही सकते, क्योंकि उन्हे सदैव विदेशी प्रतियोगिता का खतरा बना रहता है। इसी प्रकार, विदेशी व्यापार के फलस्वरूप एकाधिकार की प्रवृत्ति को ठेस पहुंचती है।

7. उपभोक्ताओं को लाभ

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से उपभोक्ताओं को चार लाभ प्राप्त है। प्रथम, उन्हे उपभोग के लिए अच्छी तथा सस्ती वस्तुएं मिलती है। द्वितीय, चयन का क्षेत्र बढ़ जाने से सार्वभौमिकता मे वृद्धि होती है अर्थात् वे अपनी मनचाही वस्तुओं का उपयोग कर सकते है।

8. मूल्यों अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है मे समता

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण सभी राष्ट्रो मे वस्तुओं के मूल्यों मे समानता होने की प्रवृत्ति पाई जाती है। इसका कारण यह है कि कम मूल्य वाले देश से ज्यादा मूल्य वाले देश मे वस्तुओं का निर्यात होने लगेगा जिससे प्रथम प्रकार के देशो मे मूल्यों मे वृद्धि और द्वितीय प्रकार के देशों मे मूल्यों मे कमी होने लगेगी। अंततः सभी देशों मे मूल्य एक समान हो जाएंगे।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार देश के औद्योगिक विकास मे भी सहायक होता है। उद्योगों के विकास हेतु जो साधन देश मे उपलब्ध नही है, उनका विदेशों से आयात किया जा सकता है। उदाहरण के लिए इंग्लैंड अपने उद्योगों के लिए कच्चा माल विदेशों से आयात करता है। इसी तरह भारत मे उत्पादन तकनीक का आयात करके औद्योगिक विकास किया गया है।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रमुख हानियां

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रमुख हानियां इस प्रकार है--

1. विदेशों पर निर्भरता

विदेशी व्यापार के कारण एक देश की अर्थव्यवस्था दूसरे देश पर कुछ वस्तुओं के लिए निर्भर हो जाती है। परन्तु यह निर्भरता सदैव ही अच्छी नही होती, विशेषकर युद्ध के समय तो इस प्रकार की निर्भरता अत्यन्त हानिकारक सिद्ध हो सकती है।

2. कच्चे माल की समाप्ति

विदेशी व्यापार द्वारा देश के ऐसे बहुत से साधन समाप्त हो जाते है, जिनका प्रतिस्थापन संभव नही होता है। अनेक कोयला, पेट्रोल तथा अन्य खनिज पदार्थ इसी प्रकार समाप्त होते जा रहे है। यदि उन वस्तुओं का उपयोग देश के भीतर ही औद्योगिक वस्तुओं को तैयार करने मे किया जाए तो एक ओर तो इनके उपयोग मे बचत की जा सकती है और इनका अधिक लाभपूर्ण उपयोग हो सकता है।

3. विदेशी प्रतियोगिता से हानि

विदेशी व्यापार के कारण औद्योगिक इकाइयों को विदेशी उद्योगों से प्रतियोगिता करनी पड़ती है, किन्तु विशेष रूप से अल्पविकसित देश इनके सामने टिक नहीं सकते है और उनका ह्रास होने लगता है। 19 वीं सदी मे विदेशी प्रतियोगिता के कारण भारतीय लगु और कुटरी उद्योगों को भारी आघात लगा।

4. अंतर्राष्ट्रीय द्वेष

विदेशी व्यापार ने प्रारंभ मे तो अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना और सहयोग को बढ़ाया, किन्तु वर्तमान समय मे यह अंतर्राष्ट्रीय द्वेष और युद्ध का आधार बना हुआ है। इसी ने उपनिवेशवाद को जन्म दिया और अनेक राष्ट्रो को दास बनाया।

5. देश का एकांगी विकास

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मे प्रत्येक देश केवल उन्ही वस्तुओं का उत्पादन करता है, जिनमें उसे तुलनात्मक लाभ प्राप्त होता है। इस प्रकार, देश मे सभी उद्योग-धन्धों का विकास न होकर, केवल कुछ ही उद्योग धन्धों का विकास संभव होता है। इस प्रकार के एकांगी विकास से देश के कई साधन बेकार ही पड़े रहते है।

6. राशिपातन का भय

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के माध्यम से कभी-कभी विकसित देशों द्वारा पिछड़ें हुए देशो मे वस्तुओं का राशिपातन किया जाता है, अर्थात् विकसित देश पिछड़े हुए देशो मे अपने माल को बहुत ही कम मूल्यों पर बेचना शुरू करते है। कभी-कभी तो वे अपने माल को उत्पादन लागत से भी कम मूल्यों पर बेचना शुरू कर देते है। स्पष्ट है कि इस प्रकार के राशिपातन से देशी उद्योगों पर बड़ा घातक प्रभाव पड़ता है और शीघ्र ही वे ठप्प हो जाते है। जब अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है एक बार देशी उद्योग-धंधे समाप्त हो जाते है तो विदेशी उद्योगपतियों द्वारा पुनः अपने माल का मूल्य बढ़ा दिया जाता है।

7. हानिकारक वस्तुओं के उपभोग की आदत

विदेशी व्यापार के कारण एक देश मे ऐसी वस्तुओं का आयात किया जा सकता है जो हानिकारक होती है। चीन मे अफीम के आयात के फलस्वरूप वहां के लोग अफीमची हो गए।

8. कृषि प्रधान अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है देशों को हानि

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण कृषि प्रधान देशों को औद्योगिक देशों की तुलना मे हानि उठानी पड़ती है। इसका कारण यह है कि कृषि प्रधान देश उन वस्तुओं का निर्यात करता है जिनका उत्पादन घटती हुई लागत के नियम के अंतर्गत होता है।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है? | International Business menaing in Hindi

1. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार | Meaning of International Trade

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार किसी देश की भौगोलिक सीमाओं से परे वस्तुओं और सेवाओं की खरीद और बिक्री को संदर्भित करता है। इसे दो देशों के बीच का व्यापार भी कहा जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है व्यापार तीन प्रकार का होता है

(iii) एन्टरपॉट (पुनः निर्यात)

(i) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रकृति

(b) विदेशी देशों की मुद्रा में भुगतान

(c) कानूनी प्रक्रियाएँ


अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है?
अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है?


(ii) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण

(ए) देश उन सभी के लिए समान या सस्ते उत्पादन नहीं कर सकते हैं जिनकी उन्हें आवश्यकता है।

(b) विभिन्न देशों के बीच प्राकृतिक संसाधनों का असमान वितरण है।

(c) उत्पादन के विभिन्न कारकों की उपलब्धता जैसे भूमि श्रम, पूंजी और कच्चा माल विभिन्न राष्ट्रों के बीच भिन्न होते हैं।

(d) श्रम में अंतर। सामाजिक आर्थिक भौगोलिक और राजनीतिक कारणों से उत्पादकता और उत्पादन लागत।

(not) एक भी देश ऐसा नहीं है जो कम लागत पर बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों का उत्पादन करने की बेहतर स्थिति में है।

2. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हमें घरेलू व्यवसाय प्रमुख क्षेत्र, जिनके संबंध में घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय एक-दूसरे से भिन्न हैं

(i) खरीदारों और विक्रेताओं की राष्ट्रीयता

(ii) अन्य हितधारकों की राष्ट्रीयता

(iii) उत्पादन के कारकों की गतिशीलता

(iv) बाजारों में ग्राहक विविधता

(v) व्यापार प्रणालियों और प्रथाओं में अंतर

(vi) राजनीतिक व्यवस्था और जोखिम

(vii) व्यापार विनियमन और नीतियां

(viii) व्यापारिक लेनदेन में प्रयुक्त मुद्रा

3. इंटरनेशनल बिजनेस का स्कोप | Scope of International Business

(i) पण्य निर्यात और आयात

(ii) सेवा निर्यात और आयात

(iii) लाइसेंसिंग और फ्रेंचाइज़िंग

यह 2 प्रकार का होता है

(a) प्रत्यक्ष निवेश

4. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभ | Benefits of international trade

(a) विदेशी मुद्रा की कमाई

(b) संसाधनों का अधिक कुशल उपयोग

(c) विकास प्रॉस्पेक्टस और रोजगार क्षमता में सुधार

(d) जीवन स्तर में वृद्धि करता है5. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रवेश करने का तरीका

(i) कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग कई व्यवसाय उच्च स्टार्ट अप लागत और सीमित संसाधनों का सामना करने के साथ, कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग की ओर रुख कर रही हैं। अनुबंध निर्माण एक कंपनी को उन उत्पादों या सेवाओं का उपयोग करने की अनुमति देता है जो किसी अन्य बाहरी उत्पादन कंपनी द्वारा निर्मित होते हैं।

(a) मेरिट | merits

इसमें लगभग कोई निवेश जोखिम शामिल नहीं है क्योंकि विदेशों में शायद ही कोई निवेश हो।

कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग कम लागत पर निर्मित वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय फर्मों को लाभ देता है।

स्थानीय निर्माताओं को भी अंतरराष्ट्रीय व्यापार और शुरुआत के साथ शामिल होने का लाभ मिलता है। निर्यात।

(b) डिमेरिट्स | Demerits

स्थानीय फर्में समान गुणवत्ता मानकों का पालन नहीं कर सकती हैं। जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

स्थानीय निर्माता अपना नियंत्रण खो देता है क्योंकि सामान अंतरराष्ट्रीय फर्मों की शर्तों और विनिर्देशों के अनुसार कड़ाई से निर्मित होते हैं।

स्थानीय निर्माता अपनी इच्छा के अनुसार सामान बेचने के लिए स्वतंत्र नहीं है।

(ii) लाइसेंसिंग और फ्रैंचाइज़िंग लाइसेंसिंग, लाइसेंसकर्ता और लाइसेंसधारी के बीच एक समझौता होता है, जहां लाइसेंसकर्ता लाइसेंसधारक द्वारा अधिग्रहीत परमिट / पेटेंट अधिकारों का उपयोग करने के लिए लाइसेंसधारक को अनुमति देता है।

फ्रेंचाइजी और फ्रेंचाइज़र के बीच एक समझौता है।

गुणवत्ता वाला उत्पाद

वर्दी नियंत्रण प्रणाली

(iii) संयुक्त उद्यम जब दो या दो से अधिक फर्म मिलकर एक नया उद्यम स्थापित करते हैं तो इसे संयुक्त उद्यम के रूप में जाना जाता है।

दो फर्म पूंजी का योगदान करती हैं और प्रबंधन उद्यम में भाग लेती हैं।

प्रतिस्पर्धा को कम करता है

छोटी कंपनियों के लिए संरक्षण

शेयरिंग कैपिटल अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है में समस्या

(iv) भारतीय कंपनी अधिनियम के अनुसार पूरी तरह से स्वामित्व वाली सब्सिडियों की स्थापना एक विदेशी कंपनी एक कंपनी में 50% से अधिक मतदान शक्ति (इक्विटी शेयर) प्राप्त करके अपनी सहायक कंपनी स्थापित कर सकती है।

(a) लाभ | Merits

मूल कंपनी विदेशों में अपने संचालन पर पूर्ण नियंत्रण रखने में सक्षम है।

प्रौद्योगिकी या व्यापार रहस्य का कोई खुलासा नहीं है क्योंकि मूल कंपनी खुद पूरे संचालन की देखरेख करती है।

(b) सीमाएं | Limitations

पूरा नुकसान मूल कंपनी के लिए है क्योंकि मूल कंपनी अकेले 100% निवेश का निवेश करती है।

व्यवसाय का यह रूप उच्च राजनीतिक जोखिमों के अधीन है क्योंकि कुछ देश 100% पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों की अनुमति नहीं देते हैं।

(v) निर्यात करना और आयात करना देश से किसी विदेशी देश में माल और सेवाओं को भेजने का अर्थ है और आयात का मतलब है किसी विदेशी देश से सामान और सेवाएँ खरीदना। निर्यात और आयात दो तरीकों से किया जा सकता है; प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष।

(a) लाभ | Merits

किसी विदेशी देश में प्रवेश पाने का यह सबसे आसान तरीका है।

संयुक्त उद्यम और विनिर्माण संयंत्रों की तुलना में फर्मों को कम निवेश करना पड़ता है।

अन्य विकल्पों की तुलना में विदेशी निवेश जोखिम शून्य या बहुत कम है।

(b) डिमेरिट्स | Demirits

चूंकि सामान भौतिक रूप से एक देश से दूसरे देश में जाता है, इसलिए इसमें अतिरिक्त पैकेजिंग, बीमा और परिवहन लागत शामिल होती है।

कुछ देशों ने आयात प्रतिबंध लगा दिया। ऐसे मामलों में, निर्यात अन्य विदेशी देशों के लिए एक अच्छा विकल्प नहीं है।

निर्यातक ग्राहकों के पास नहीं हैं, इसलिए वे ग्राहक को स्थानीय फर्म से बेहतर सेवा नहीं दे सकते।

6. विश्व व्यापार में भारत का स्थान

(i) भारत का निर्यात और माल का आयात उदारीकरण और वैश्वीकरण की नई आर्थिक नीति के बाद भारत के विदेशी व्यापार में जबरदस्त वृद्धि हुई है। जीडीपी में विदेशी व्यापार का हिस्सा 1990 में 14.6% से बढ़कर 2003 में 91- 24.1% हो गया है - 2004।

(ii) भारत का निर्यात और सेवाओं का आयात भारत का सॉफ्टवेयर निर्यात का हिस्सा 1995-96 में 10.2% से बढ़कर 2003-04 में 49% हो गया है। जहां 1995 में यात्रा और परिवहन का हिस्सा 64.3% से घटा है - 2003-04 में 96 से 29.6%।

7. भारत का विदेशी निवेश 1991 की नई आर्थिक नीति के बाद विदेशी निवेश का प्रवाह भी बढ़ा है। भारत का विदेशी निवेश भी 1990-91 में 19 करोड़ रुपये से बढ़कर 2003-04 में 83,616 करोड़ रुपये हो गया है।

(a) उच्च लाभ के लिए संभावनाएँ

(b) क्षमता उपयोग में वृद्धि

(c) वृद्धि की संभावनाएँ

(d) घरेलू बाजार में तीव्र प्रतिस्पर्धा से बाहर

(ई) अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है बेहतर व्यापार दृष्टि

अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है? | International Business menaing in Hindi

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अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है

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भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार .

Solution : स्वाधीनता के बाद हमारे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की विशेषताएँ निम्नलिखित
(i) इस व्यापार की वृद्धि केवल मात्रा तथा मूल्य में ही नहीं हुई बल्कि दिशा में भी परिवर्तत अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है हुई है।
अब इंग्लैंड तथा अन्य राष्ट्र संघ देशों के साथ हमारे व्यापारिक संबंध एक तरफा नहीं रह गए जैसा कि स्वाधीनता से पहले था।
(ii) अब हम विदेशों को कच्चा माल तथा तैयार उत्पाद भी निर्यात करते हैं।
(iii) हमारे प्रमुख उत्पाद हैं-कृषि तथा संबंधित उत्पाद, पेट्रोलियम उत्पाद तथा अयस्क और खनिज। भारत पेट्रोलियम तथा संबंधित उत्पाद, मोती तथा बहुमूल्य रत्न, सोना और चाँदी आदि का आयात करता है।
(iv) अब हमारे व्यापारिक संबंध इंग्लैंड की अपेक्षा अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान, रूस, यूरोप तथा तेल उत्पादक देशों के साथ हैं।
(v) सार्क (SAARC) देशों के साथ भी भारत के व्यापारिक संबंध बढ़ रहे हैं।
(vi) अमेरिका तथा अरब देशों के बाद चीन के साथ भारत के व्यापारिक संबंध बहुत अच्छे हैं।

डेली अपडेट्स

यह एडिटोरियल दिनांक 23/10/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “International trade is not a zero-sum game” लेख पर आधारित है। इसमें भारत द्वारा मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में संरक्षणवाद को दूर करने की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की गई है।

संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (USTR) ने अपनी वर्ष 2021 की "विदेश व्यापार बाधाओं पर राष्ट्रीय व्यापार अनुमान रिपोर्ट" (National Trade Estimate Report on Foreign Trade Barriers) में बताया है कि भारत की औसत टैरिफ दर 17.6% है जो किसी भी प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्था की तुलना में उच्चतम है।

अपने घरेलू उद्योगों की चीन एवं अन्य देशों द्वारा डंपिंग तथा अन्य व्यापार विकृति अभ्यासों से रक्षा करने के उद्देश्य से भारत ने अपनी टैरिफ दरों में वृद्धि की है और अपने अन्य गैर-टैरिफ उपायों को कठोर बनाया है।

यद्यपि व्यापार संरक्षणवाद (Trade protectionism) का अर्थव्यवस्था को तत्काल लाभ हो सकता है, लेकिन सभी अर्थशास्त्री सहमति रखते हैं कि दीर्घावधि में यह देश के आर्थिक हितों को नुकसान पहुँचाता है।

संरक्षणवाद के साधन

भारत के साथ ही अन्य देश अनुचित व्यापार अभ्यासों से अपनी अर्थव्यवस्था की रक्षा के लिये विभिन्न उपाय अपनाते हैं। उनमें से कुछ प्रमुख उपाय हैं-

  • टैरिफ: टैरिफ किसी देश की सरकार द्वारा माल के आयात या निर्यात पर लगाया जाने वाला कर है। उच्च टैरिफ विदेशी उत्पादकों के लिये किसी घरेलू बाज़ार में अपना माल बेचने की लागत बढ़ा देते हैं, जिससे स्थानीय उत्पादकों को रणनीतिक लाभ प्राप्त होता है।
    • भारत में विश्व के उच्चतम टैरिफ दरों में से एक लागू है।
    • WTO के अनुसार, वर्ष 2015 से 2019 के बीच भारत ने 233 एंटी-डंपिंग जाँचों की शुरुआत की जो वर्ष 2011 से 2014 के बीच ऐसे 82 जाँचों की तुलना में तेज़ वृद्धि को दर्शाता है।
    • प्रतीत होता है कि भारत ने यह शर्त इसलिये आरोपित की है ताकि आयातक भारत के मुक्त व्यापार समझौता (FTA) भागीदारों से माल का आयात न कर सकें।

    संरक्षणवाद के पक्ष में तर्क

    • राष्ट्रीय सुरक्षा: यह आर्थिक संवहनीयता के लिये अन्य देशों पर निर्भरता के जोखिम से संबंधित है। यह तर्क दिया जाता है कि युद्ध की स्थिति में आर्थिक निर्भरता विकल्पों को सीमित कर सकती है। इसके साथ ही, कोई देश किसी दूसरे देश की अर्थव्यवस्था को नकारात्मक तरीके से प्रभावित कर सकता है।
    • नवजात उद्योग: यह तर्क दिया जाता है कि उद्योगों को उनके प्रारंभिक चरणों में संरक्षण प्रदान करने के लिये संरक्षणवादी नीतियों की आवश्यकता होती है। चूँकि बाज़ार खुला होता है, वैश्विक स्तर की बड़ी कंपनियाँ बाज़ार पर कब्जा कर सकती हैं। इससे नए उद्योग में घरेलू खिलाड़ियों के लिये अवसर का अंत हो सकता है।
    • डंपिंग: कई देश अन्य देशों में अपने माल की डंपिंग (उत्पादन लागत या स्थानीय बाज़ार में उनकी कीमत से कम मूल्य पर बिक्री करना) करते हैं।
      • डंपिंग का उद्देश्य प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त करते हुए विदेशी बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना और इस तरह एकाधिकार स्थापित करना होता है।

      संरक्षणवाद के विरुद्ध तर्क

      • व्यापार समझौते: भारत को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों से व्यापक लाभ हुआ है। वाणिज्य मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, भारत ने 54 देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर किये हैं।
        • वे टैरिफ रियायतें प्रदान करते हैं, जिससे लघु एवं मध्यम उद्यमों (SMEs) से संबंधित उत्पादों के साथ ही वृहत रूप से उत्पादों के निर्यात को अवसर प्राप्त होता है।
        • ऐसे प्रतिबंध केवल भुगतान संतुलन की कठिनाइयों, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे कुछ उद्देश्यों से ही आरोपित किये जा सकते हैं। घरेलू उद्योग को स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा से बचाने के लिये ऐसी बाधाएँ नहीं लगाई जा सकती हैं।

        आगे की राह

        • ‘कारोबार सुगमता’ में सुधार: हालाँकि भारत ने कई दिशाओं में प्रगति की है, लेकिन व्यवसाय शुरू करने, अनुबंध लागू करने और संपत्ति को पंजीकृत करने जैसे संकेतकों में वह अभी भी कई बड़े देशों से पीछे है।
          • इन संकेतकों में सुधार से भारतीय फर्मों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है कर सकने और बड़ी बाज़ार हिस्सेदारी प्राप्त कर सकने में मदद मिल सकती है।

          निष्कर्ष

          भारत को घरेलू उद्योग के हितों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों से FDI के रूप में विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये व्यापार रियायतें प्रदान करने के बीच एक बेहतर संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता है।

          वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के निर्माण के लक्ष्य को प्राप्त अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्या है करने के लिये व्यापक, बहुआयामी और बहु-क्षेत्रीय प्रयासों की ज़रूरत है।

          अभ्यास प्रश्न: "संरक्षणवाद अल्पावधि में तो लाभप्रद हो सकता है, लेकिन दीर्घावधि में यह अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाता है।" टिप्पणी कीजिये।

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