विदेशी मुद्रा बाजार की समीक्षा

रिजर्व बैंक ने किया है मुद्रा का बेहतर प्रबंधन
भारत जैसे बड़े और उभरते बाजार वाले देश के लिए मुद्रा प्रबंधन एक पेचीदा काम है क्योंकि यहां चालू खाते का घाटा (सीएडी) निरंतर बना रहता है। चूंकि भारत शेष विश्व से बड़े पैमाने पर पूंजी जुटाता है इसलिए वैश्विक वित्तीय परिस्थितियों में अचानक बदलाव काफी अस्थिरता पैदा करने वाला हो सकता है। ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के लिए सतर्क रहना जरूरी है।
मुद्रा प्रबंधन की जटिलता का आकलन बीते वर्ष की घटनाओं से किया जा सकता है। गत वर्ष जब विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब डॉलर का स्तर पार कर गया तो कुछ लोगों को यह अत्यधिक लग रहा था। ऐसे विचार सामने आए कि कैसे आरबीआई अपना प्रतिफल बढ़ा सकता है। नवंबर 2021 में इस स्तंभ में कुछ विचारों की व्यवहार्यता पर चर्चा की गई और यह दलील दी गई कि उच्च विदेशी मुद्रा भंडार से मौजूदा वैश्विक आर्थिक माहौल में जो सबसे मूल्यवान चीज हासिल की जा सकती है वह है वित्तीय स्थिरता। भारत की बाहरी स्थिति की प्रकृति को देखते हुए चीजें काफी तेजी से बदल सकती हैं। बीते महीनों में हम ऐसा होते हुए देख चुके हैं। खासतौर पर यूक्रेन युद्ध के बाद काफी बदलाव आया है। कई देशों में जहां मुद्रास्फीति संबंधी दबाव बढ़ रहा था वहीं जिंस की ऊंची कीमतों ने बड़े केंद्रीय बैंकों, खासकर फेडरल रिजर्व को तत्काल कदम उठाने पर विवश किया। इसके चलते इस सप्ताह नीतिगत दरों में 75 आधार अंकों का इजाफा हो गया। ये घटनाक्रम भारत को अलग तरह से प्रभावित करते हैं। सबसे पहले, ऊंची जिंस कीमतों के कारण व्यापार घाटा बढ़ रहा है। अनुमान है कि चालू वर्ष में चालू खाता घाटा जीडीपी के तीन प्रतिशत से अधिक रहेगा। दूसरा, वित्तीय हालात के तंग होने तथा वैश्विक बाजारों में जोखिम में बचाव के कारण पूंजी बाहर जा रही है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने इस वर्ष के आरंभ से अब तक 30 अरब डॉलर मूल्य की परिसंपत्तियों की बिक्री की। आयातकों और एफपीआई दोनों में डॉलर की मांग काफी ऊंची है और यह रुपये के मूल्य को प्रभावित कर रही है। इस वर्ष अब तक रुपया डॉलर के मुकाबले सात फीसदी गिर चुका है। यदि रिजर्व बैंक ने हस्तक्षेप नहीं किया होता तो रुपया और तेजी से गिरता। जनवरी 2022 से अब तक हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 60 अरब डॉलर तक घटा है। हालांकि इसके लिए कुछ हद तक पुनर्मूल्यांकन भी उत्तरदायी हो सकता है।
साफ कहा जाए तो आरबीआई ने महामारी के बाद से मुद्रा के प्रबंधन के क्षेत्र में काफी अच्छा काम किया है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने भारी प्रोत्साहन राशि डाली जिससे पूंजी की आवक बढ़ी। आरबीआई ने समय पर हस्तक्षेप किया और 2020-21 में 100 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा जुटाई। यदि आरबीआई ने हस्तक्षेप नहीं किया होता तो रुपये का अधिमूल्यन विदेशी मुद्रा बाजार की समीक्षा होता जिससे देश की बाह्य प्रतिस्पर्धा प्रभावित होती और मुद्रा में और अधिक अस्थिरता आती।
रुपया तथा यूरो एवं येन जैसी अन्य मुद्राओं के दबाव में होने की एक वजह डॉलर का मजबूत होना भी है। 2022 में डॉलर सूचकांक 11 फीसदी बढ़ा है। पूंजी का अमेरिका जाना जारी रहेगा क्योंकि मौद्रिक नीति में अंतर है। इस बात की संभावना बहुत कम है कि यूरोपीय केंद्रीय बैंक या बैंक ऑफ जापान फेड की नीतिगत प्रतिक्रिया की बराबरी कर पाएंगे। दरों में अंतर बढ़ने से निवेशकों को फंड को अमेरिका स्थानांतरित करने का प्रोत्साहन मिलेगा। इससे यूरो और येन तथा अन्य मुद्राओं पर भी दबाव बढ़ेगा। इस परिदृश्य में एक सीमा के परे रुपये का बचाव करना नुकसानदेह भी साबित हो सकता है।
रुपये के बचाव की एक वजह आयातित मुद्रास्फीति को थामना हो सकता है। इस रणनीति की कीमत के रूप में वैश्विक जिंस कीमतें कुछ समय तक तेज बनी रहेंगी। इसकी एक अन्य वजह यह हो सकती है कि कंपनियों के पास बाहरी कर्ज के जोखिम का बचाव उपलब्ध न हो। ऐसी कंपनियों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए कि वे बचाव सुनिश्चित करें और लागत वहन करने के लिए शेष तंत्र पर निर्भर न रहें। इसके अलावा गिरती हुई मुद्रा अक्सर राजनीतिक लिहाज से भी अच्छी नहीं साबित होती। लेकिन आरबीआई के लिए यह चिंता का विषय नहीं होना चाहिए। बल्कि उसे यह स्पष्ट करने का हरसंभव प्रयास करना चाहिए कि रुपये का अवमूल्यन एवं समायोजन किस प्रकार भारत के हित में है। यहां ध्यान देने लायक बात यह है कि चीन के विनिर्माण और निर्यात पावरहाउस में तब्दील होने की एक वजह उसकी मुद्रा का अवमूल्यित होना भी बताया जाता है। जरूरी नहीं कि भारत भी यही करे लेकिन उसे ऐसी स्थिति में भी नहीं होना चाहिए कि वह अपनी मुद्रा के बचाव के लिए ऋण लेना पड़े।
आरबीआई ने हाल ही में घोषणा की है कि वह विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ाने के उपाय कर रहा है। इस क्रम में बैंकों को अनिवासी भारतीयों से जमा जुटाने की शर्तें शिथिल की गईं। इतना ही नहीं डेट बाजार में एफपीआई को और लचीलापन प्रदान करने के अलावा घरेलू कंपनियों को विदेशों से उदार शर्त पर ऋण जुटाने की अनुमति दी गई। हो सकता है कि इन उपायों से आवक तत्काल न बढ़े लेकिन कुल मिलाकर इससे यही संकेत निकलता है कि भारत ऋण लेना चाहता है। भले ही ऐसा अल्पावधि में किया जाए। इसका लक्ष्य राजस्व और मुद्रा को मजबूत बनाना है।
वर्ष 2021-22 में भारत का बाहरी कर्ज 47 अरब डॉलर बढ़कर 620.7 अरब डॉलर हो गया। अल्पावधि के ऋण की परिपक्वता यानी एक वर्ष के ऋण के लिए यह 20 फीसदी थी। वहीं दीर्घावधि की ऋण परिपक्वता की बात करें तो इस वित्त वर्ष के अंत तक इसका आंकड़ा 40 फीसदी का स्तर पार कर सकता है। यानी 260 अरब डॉलर का ऋण हमें मार्च 2023 के पहले चुकाना होगा। इसका बड़ा हिस्सा आगे बढ़ाया जा सकता है लेकिन इससे अनिश्चितता तो आ ही सकती है। भारत का बाहरी ऋण और जीडीपी का अनुपात बहुत अधिक नहीं है लेकिन इससे जोखिम बढ़ सकता है। ऐसे में जब वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में स्थिरता आ आ जाए तो बेहतर होगा कि सरकार और केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा की आवक की समीक्षा करें। उदाहरण के लिए गैर सरकारी विदेशी ऋण 500 अरब डॉलर तक पहुंच रहा है। कंपनियों द्वारा ब्याज दर के चक्कर में अधिक विदेशी ऋण लेने से जोखिम उत्पन्न हो सकता है। इसका असर अन्य कारोबारी क्षेत्रों पर भी पड़ता है क्योंकि इससे मुद्रा अधिमूल्यित होती है।
Transforming India: दुनिया का चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार भारत के पास
देश में विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ रहा है। यह देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाने वाले कई मानकों में से एक है। दुनिया में चीन, जापान और स्विट्जरलैंड के बाद चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार आज भारत के पास है।
करीब 634 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार
साल 2018-19 में विदेशी मुद्रा बाजार की समीक्षा भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 411.9 बिलियन डॉलर का रहा था जिसके बाद यह 2019-20 में करीब 478 अरब डॉलर का हुआ। तत्पश्चात 2020-21 में भी विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि दर्ज की गई। यह 577 बिलियन डॉलर पर जा पहुंचा और फिर 31 दिसंबर 2021 तक यह करीब 634 अरब डॉलर तक जा पहुंचा। यानि 2021-22 की पहली छमाही में विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर के आंकड़े से ऊपर निकल कर 633.6 बिलियन डॉलर के उच्च स्तर पर पहुंच गया था।
32.6 प्रतिशत की वृद्धि
इस अवधि में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 32.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। इसी आधार पर नवंबर 2021 तक चीन, जापान और स्विट्जरलैंड के बाद भारत का विदेशी मुद्रा भंडार दुनिया में सबसे ज्यादा रहा। यह भारत की गौरवशाली उपलब्धि है जिस पर हर भारतीय को गर्व महसूस करना चाहिए। आज भारत मजबूत स्थिति में खड़ा है जिसमें पूरे देश का समग्र विकास होता दिखाई दे रहा है।
भारत के विदेशी व्यापार में मजबूती से बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार
दरअसल, वर्ष 2021-22 में भारत के विदेशी व्यापार में मजबूती से सुधार हुआ जिसके परिणामस्वरूप भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में भी वृद्धि दर्ज हुई। देश के विदेशी व्यापार के बढ़ने से भारत को विदेशी मुद्रा कमाने का सुनहरा अवसर मिला। सबसे खास बात यह रही कि ये उपलब्धि भारत ने कोविड संकट से लड़ते हुए हासिल की। यानि जब दुनिया के तमाम देश इस महामारी से जूझ रहे थे तब भारत ने स्वयं के प्रयासों से देश की आवाम को विदेशी व्यापार में वृद्धि दर्ज करने को प्रोत्साहित किया। उसी का नतीजा रहा है कि आज भारत कोविड संकट में छाई वैश्विक मंदी से तेजी से उभर रहा है। भारत 2021-22 के लिए निर्धारित 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर के महत्वाकांक्षी वस्तु निर्यात लक्ष्य को हासिल करने के मार्ग पर बेहतर तरह से अग्रसर रहा और इस लक्ष्य को हासिल कर दिखाया। 2021-22 में 400 बिलियन डॉलर के एक्सपोर्ट में भारत ने नॉन बासमती राइस, गेहूं, समुद्री उत्पाद, मसाले और चीनी जैसी चीजों ने जमकर एक्सपोर्ट किया। उसके बाद पेट्रोलियम प्रोडक्ट यूएई निर्यात किए गए। साथ ही अन्य देशों में रत्न और आभूषणों का भी ज्यादा निर्यात किया गया। केवल इनता ही नहीं भारत ने इस बीच बांग्लादेश को ऑर्गेनिक और नॉन ऑर्गेनिक केमिकल निर्यात किया और ड्रग्स और फार्मास्युटिकल्स का सबसे ज्यादा निर्यात नीदरलैंड को किया। इससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि में काफी मदद मिली। विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने से अर्थव्यवस्था को बहुत से फायदे होते हैं।
रुपए को मिलती है मजबूती
रिजर्व बैंक के लिए विदेशी मुद्रा भंडार काफी अहम होता है। आरबीआई जब मॉनिटरी पॉलिसी तय करता है तो उसके लिए यह काफी अहम फैक्टर साबित होता है कि उसके पास विदेशी मुद्रा भंडार कितना है। यानि जब आरबीआई के खजाने में डॉलर भरा होता है तो देश की करेंसी को मजबूती मिलती है।
आयात के लिए डॉलर रिजर्व जरूरी
जब भी हम विदेश से कोई सामान खरीदते हैं तो ट्रांजेक्शन डॉलर में होती है। विदेशी मुद्रा बाजार की समीक्षा ऐसे में इंपोर्ट को मदद के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का होना जरूरी है। अगर विदेश से आने वाले निवेश में अचानक कभी कमी आती है तो उस समय इसकी महत्ता और ज्यादा बढ़ जाती है। भारत बड़े पैमाने पर आयात करता रहा है लेकिन बीते कुछ साल में पीएम मोदी के नेतृत्व में देश ने अपने आयात स्तर को कम करके निर्यात स्तर को बढ़ाया है। पीएम मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दिखाए रास्ते पर देश अब चल पड़ा है तभी तो आज भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ रहा है।
FDI में तेजी के मिलते हैं संकेत
अगर विदेशी मुद्रा भंडार में तेजी आती है तो इसका मतलब होता है कि देश में बड़े पैमाने पर एफडीआई आ रहा है। ऐसे में अर्थव्यवस्था के लिए विदेशी निवेश बहुत अहम होता है। अगर विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में पैसा लगाते रहे हैं तो दुनिया के लिए यह संकेत जाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर उनका भरोसा बढ़ रहा है। भारत सरकार ने इसके लिए भी देश में बीते कुछ साल में बेहतर माहौल तैयार किया है। केंद्र सरकार ने देश में ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ का माहौल प्रदान किया। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस एक तरह का इंडेक्स है। इसमें कारोबार सुगमता के लिए कई तरह के पैमाने रखे गए हैं। इनमें लेबर रेगुलेशन, ऑनलाइन सिंगल विंडो, सूचनाओं तक पहुंच, पारदर्शिता इत्यादि शामिल हैं। देश में इसे उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (डीपीआईआईटी) तैयार करता है। आज भारत इस लिहाज से भी काफी सुधार कर चुका है। यही कारण है कि विदेशी निवेशक अब भारत में निवेश को तैयार खड़े हैं।
विदेशी ऋण
सितम्बर, 2021 के अंत में भारत का विदेशी ऋण 593.1 बिलियन डॉलर था जो जून, 2021 के अंत के स्तर पर 3.9 प्रतिशत से अधिक था। आर्थिक समीक्षा में मार्च, 2021 के अंत में भारत के विदेशी ऋण ने पूर्व-संकट स्तर को पार कर लिया था लेकिन यह सितम्बर, 2021 के अंत में एनआरआई जमाराशियों से पुनरुत्थान की मदद और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा वन-ऑफ अतिरिक्त एसडीआर आवंटन की मदद से दृढ़ हो गया। कुल विदेशी ऋण में लघु अवधि ऋण की हिस्सेदारी में थोड़ी सी गिरावट जरूर आई। यह हिस्सेदारी जो मार्च, 2021 के अंत में 17.7 प्रतिशत थी सितम्बर के अंत में 17 प्रतिशत हो गई। समीक्षा यह दर्शाती है कि मध्यम अवधि परिप्रेक्ष्य से भारत का विदेशी ऋण उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्था के लिए आंके गए इष्टतम ऋण से लगातार कम चल रहा है।
भारत की लचीलापन
आर्थिक समीक्षा यह दर्शाती है कि विदेशी मुद्रा भंडार में भारी बढ़ोतरी से विदेशी मुद्रा भंडारों से कुल विदेशी ऋण, लघु अवधि ऋण से विदेशी विनिमय भंडार जैसे बाह्य संवेदी सूचकांकों में सुधार को बढ़ावा मिला है। बढ़ते हुए मुद्रा स्फीति दबावों की प्रतिक्रिया में फेड सहित प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण केंद्रीय बैंकों द्वारा मौद्रिक नीति के तेजी से सामान्यीकरण की संभावना से पैदा हुई वैश्विक तरलता की संभावना का सामना करने के लिए भारत का बाह्य क्षेत्र लचीला है।
विदेशी मुद्रा बाजार की समीक्षा
बीजिंग, 23 जुलाई (आईएएनएस)। चीन में विदेशी मुद्रा बाजार अधिक लचीला है और आरएमबी की विनिमय दर अपेक्षाकृत स्थिर रही। चीन में सीमापार पूंजी का प्रवाह आम तौर पर स्थिर रहा। यह बात चीन राष्ट्रीय विदेशी मुद्रा प्रबंध ब्यूरो के उप प्रभारी और प्रेस प्रवक्ता वांग छुनयिंग ने 22 जुलाई को पेइचिंग में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कही।
वांग ने कहा कि इस साल के पहले छह महीनों में चीन में बैंकों के विदेशी मुद्रा निपटान व बिक्री और विदेशी-संबंधित प्राप्तियों और भुगतानों दोनों ने अधिशेष दिखाया है। माल के व्यापार और प्रत्यक्ष निवेश जैसे मौलिक अधिशेषों ने अपेक्षाकृत उच्च स्तर बनाए रखा है।
आरएमबी की विनिमय दर की चर्चा में वांग ने कहा कि इस साल से अमेरिकी फेडरल रिजर्व के ब्याज दर बढ़ाने और भू-राजनीति मुठभेड़ आदि कई तत्वों से प्रभावित होकर अंतर्राष्ट्रीय विदेशी मुद्रा के बाजार में यूएस डॉलर का मूल्य निरंतर बढ़ता रहा, जबकि गैर यूएस डॉलर की मुद्राओं का मूल्य कम होता रहा। यूएस डॉलर के प्रति चीन की विनिमय दर में भी अवमूल्यन हुआ है, लेकिन अन्य प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं की तुलना में आरएमबी के मूल्य में स्थिरता अपेक्षाकृत मजबूत होती रही है।
विनिमय दर के जोखिम का निपटारा करने के लिए चीन राष्ट्रीय विदेशी मुद्रा प्रबंध ब्यूरो ने कई विभागों और वाणिज्य बैंकों के साथ मिलकर चीन के उद्यमों को मदद दी है।
(साभार---चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
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टूरिज्म-ट्रांसपोर्ट सेक्टर को राहत, 600 अरब डॉलर का रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा भंडार, RBI के ये हैं अहम ऐलान
रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति विदेशी मुद्रा बाजार की समीक्षा समिति ने ब्याज दरों में किसी तरह के बदलाव का ऐलान नहीं किया है. वहीं रिजर्व बैंक ने टूरिज्म और ट्रांसपोर्ट सेक्टर को कुछ राहत देने की कोशिश की है.
aajtak.in
- नई दिल्ली ,
- 04 जून 2021,
- (अपडेटेड 04 जून 2021, 12:12 PM IST)
- ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं
- कई सेक्टर के लिए अहम ऐलान
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी हर दो महीने पर होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा का ऐलान शुक्रवार को किया. रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने ब्याज दरों किसी तरह के बदलाव का ऐलान नहीं किया है. वहीं रिजर्व बैंक ने टूरिज्म और ट्रांसपोर्ट सेक्टर को कुछ राहत देने की कोशिश की है. रिजर्व बैंक ने बताया है कि उसका विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है. रिजर्व बैंक के आज के ऐलान की प्रमुख बातें इस प्रकार है:
ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं
रिजर्व बैंक की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी के द्वारा ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया है. रेपो रेट को 4 फीसदी और रिवर्स रेपो रेट को 3.5 फीसदी पर बरकरार रखा गया है. इसका मतलब यह है कि लोगों के लोन ईएमआई पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा और वे यथावत रहेंगी.
टूरिज्म और ट्रांसपोर्ट सेक्टर को राहत
कोरोना से बर्बाद हो चुके टूरिज्म एवं ट्रांसपोर्ट सेक्टर को सरकार ने कोई खास राहत अब तक नहीं दी है. लेकिन इन सेक्टर को अब रिजर्व बैंक के माध्यम से राहत देने की कोशिश की जा रही है. रिजर्व बैंक के गवर्नर कहा कि बैंकों के माध्यम से इन सेक्टर को राहत दी जाएगी.
रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि 15 हजार करोड़ रुपये की नकदी की व्यवस्था बैंकों को जाएगी. इससे बैंक होटल, टूर ऑपरेटर, रेस्टोरेंट, प्राइवेस बस, सलोन, एविएशन एंसिलियरी सेवाओं ऑपरेटर आदि को किफायती लोन दे सकेंगे.
रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा भंडार
शक्तिकांत दास ने कहा कि रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में सक्रियता से हिस्सा ले रहा है. महामारी से निपटने के लिए वित्तीय सिस्टम की मजबूती काफी महत्वपूर्ण है. दुनिया भर में परेशानी के बावजूद मुद्रा विनिमय दर स्थिर है. देश का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 598 अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच चुका है और हमें पूरी उम्मीद है कि अब यह अब 600 अरब डॉलर को पार कर गया है, हालांकि अभी आधिकारिक रूप से आंकड़े एक हफ्ते बाद आएंगे.
इस साल 9.5 फीसदी रहेगी जीडीपी ग्रोथ
रिजर्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि वित्त वर्ष 2021-22 में जीडीपी ग्रोथ 9.5 फीसदी रह सकती है. यह आंकड़ा अच्छा है, लेकिन यह रिजर्व बैंक के पहले के 10.5 फीसदी के अनुमान से कम है. रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि मॉनसून सामान्य रहने का अनुमान है और इसकी वजह से ग्रामीण मांग मजबूत रहेगी, जिसकी वजह से जीडीपी में काफी अच्छी बढ़त होने का अनुमान है. रिजर्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि पहली तिमाही में 18.5 फीसदी, दूसरी तिमाही में 7.9 फीसदी, तीसरी तिमाही में 7.2 फीसदी और चौथी तिमाही में 6.6 फीसदी की बढ़त हो सकती है.
महंगाई 5.1 फीसदी पर
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि मौजूदा हालात को देखते हुए इस साल यानी वित्त वर्ष 2021-22 में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स आधारित (खुदरा महंगाई) 5.1 फीसदी रह सकती है. उन्होंने कहा कि इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में खुदरा महंगाई 5.2 फीसदी, दूसरी तिमाही में 5.4 फीसदी, तीसरी तिमाही में 4.7 फीसदी और चौथी तिमाही में 5.3 फीसदी रह सकती है.
MSME को 16000 करोड़ की सहायता
शक्तिकांत दास ने कहा कि MSME को सहयोग देने के लिए रिजर्व बैंक SIDBI को 16,000 करोड़ रुपये की एक खास और अतिरिक्त नकदी सुविधा देगा. पहले भी ऐसी सुविधा दी गई थी. पहले इसके तहत 25 करोड़ रुपये की उधार लेने की सुविधा थी, जिसे बढ़ाकर 50 करोड़ रुपये कर दिया है.